शीत और बसंत -भोजपुरी लोक कथा

two man in white shorts fighting using sword during daytime
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यह कहानी भोजपुरी लोक कथा का हिंदी रूपांतरण है।यह कहानी बचपन में दादी सुनती थी अपने कहानियो के पिटारे में से निकाल के। कब हूँ हूँ करते नींद आ जाती दादी के आग़ोश में पता ही नहीं चलता था। 

बहुत समय पहले की बात है हज़ारों साल पहले की। एक खूबसूरत नगरी थी। बहुत ही शानदार शहर। शहर के चारो ओर ऊँची ऊँची दीवारें। इतनी ऊँची दीवार पर इंसान क्या  जहाँ से पंक्षि भी उड़कर पर करना चाहे तो उसे साथ में ऑक्सिजन का सिलेंडर लेके चलना पड़े। नगर में चार प्रवेश द्वार थे। काफ़ी मोटे और मज़बूत लोहे के फाटक। जिस तोप के गोलों का भी कोई असर नहीं।जहाँ पर अस्त्र और शास्त्र से शुसज्जित प्रहरी दिन रात चारो  ओर चहल क़दमी करते हुए सावधान मुद्रा में पहरे देते थे। नगर की दीवार के बाहर चारों तरफ़ भयानक गहरी खाईं थी। जिसमें साल भर पानी भरा रहता था और ख़तरनाक मगरमक्ष  उसमें विचरण किया करते थे। यानी कि नगर के ऊपर आक्रमण करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था। नगर के अंदर वही प्रवेश कर पाते थे जो वहाँ के नागरिक हो, या  व्यापारी हो या फिर जिन्हें उस नगर के राजा का ख़ास निमंत्रण प्राप्त हो। 

इस राजा का नाम था वाशुदेव वर्मन । बहुत ही प्रतापी सम्राट। 6 फ़ीट से लम्बी की ऊँचाई, लम्बे लम्बे हाथ, चौड़ा बदन, गोरा शरीर और गम्भीर आवाज़।  अस्त्र शस्त्र उनकी यू शोभा बढ़ते थे जैसे मानो चाँद के ऊपर चाँदनी, कृष्णा के माथे पर रखा मोर पंख, रामचंद्र के हाथ में सुसज्जित उनकी धनुष। इस सम्राट की ख्याति दूर दूर तक फैली थी। और आस पास के सारे राजा अपने कोश से टैक्स के रूप में सम्राट के ख़ज़ाने में जमा कराते। और उसके बदले में उन्हें मिलती बाहरी आक्रमणो से सुरक्षा और सम्राट के राज्य के साथ व्यापार करने का अवसर। सम्राट जितने प्रतापी उतनी ही खूबसूरत और राज्य कार्यों में माहिर उनकी पत्नी महारानी अश्रफा थीं। महाराज का विवाह महारानी से स्वयंबर में हुआ था। जिसमें की बहुत ही कठीन प्रतियोगिताओं को जीतने के बाद राजकुमारी  अश्रफा में सम्राट को अपने वर  के रूप में चुना। राजकुमारी इन प्रतियोगिताओं को खुद से पार कर चुकी थीं स्वयंवर में रखने से पहले। राजा और रानी का जीवन बहुत ही सुखद  और उत्तम ढंग से गुजर रहा था। दोनो मिल कर राज कार्य का काम  सम्भालते और जनता को समय पर उचित न्याय मिलता। विवाह के कुछ साल बितने के उपरांत राजा और रानी  को दो खूबसूरत जुड़वा पुत्र रत्नो की प्राप्ति हुई। 

राज्य  के राजकुमारों का जन्म होने पर पूरे नागरिकों में ख़ुशी की लहर बिखर गई। लोग इतने प्रसन्न थे कि वे जगह जगह  खुद से ही होली और दीपावली जैसे उत्सवों का आयोजन करने लगे। राज्य के सभी नागरिक बच्चे, बूढ़े और जवान इनमे शामिल होते।राजा द्वारा भी बहुत सारे उत्सव जैसे खेल उत्सव, गायन और वादन उत्सव, और नृत्य उत्सव आदि का आयोजन किया जा रहा था। जिसमें जितने और भाग लेने वालों को सोने की मुद्राओं से सम्मानित  और पुरश्कृत  किया जाता था। पूरे राज्य को दीपकों से सुसज्जित कर दिया गया। दूर से ऐसा लगता कि आसमान से सारे तारे आज रात को आसमान छोड़कर ज़मीन पर उतर आए हो। 

इन राजकुमारों का नामकरण किया गया राज्य के  महापुरोहित द्वारा जिन्होंने इनका नाम रखा शीत और बसन्त। शीत यानी ठंडी रितु  जिसके मुख की छवि को  देखते ही महाराज और रानी के मन से सारे दुःख और क्रोध मिट जाते और मन को शीतलता का अहशास होने लगता। बसंत को देखते ही किसी का भी मन प्रशन्नता और ख़ुशी से भर उठता। शीत और बसंत भी अपने माता पिता से बहुत प्यार करते। अपने गुरुओं और बड़ों का सम्मान करते। यहाँ तक कि सैनिक और सेवकों से भी सम्मान के साथ पेश आते और उनके कार्यों की सराहना करते। उनके गुरु ने उनको सिखाया कि किसी को समाज में नीचा मत समझो। सब का कार्य महत्वपूर्ण है। समाज में कोई एक भी वर्ग अपना काम करना छोड़ दे तो समाज का चलता हुआ विकाश का पहिया रुक जाता है। अतः सबके काम का सम्मान तथा उनके कार्यों की सराहना करनी चाहिए।

राजकुमार अपने गुरुओं और सेना के शिक्षकों के तत्वाधान में शिक्षा प्राप्त करते रहे। धीरे वो सभी विधाओं में पारंगत होते चले गए। अब राजकुमारों की उमर लगभग 12 साल होने को आ चुकी थी। उनके माता पिता जब भी उनको देखते तो वो गर्व से फूला नहीं समाते। चेहरों पर प्रसन्नता की लहर दौर पड़ती। राज्य की जनता भी दोनो राजकुमारों से बहुत प्यार करती। उनके जन्मदिन पर सारे नागरिक प्रसन्नता पूर्वक उपहार लाते। कोई फूलो के गुच्छे, तो कोई पकवान, तो कोई हाथ से बने हुए खिलौने,तो कोई महँगे वस्त्र और क़ीमती आभूषण तथा दुर्लभ अस्त्र और शस्त्र। राजकुमार सब के उपहारों का सम्मान करते चाहे वो उपहार सस्ता हो या महँगा । सबको प्यार से गले लगाते और राजा के आदेश पर सब नागरिकों को राज्य की तरफ़ से उपहार बाटे जाते। 

एक दिन रात्रि का तीसरा पहर चल रहा था। महल  में चारों तरफ़ टीम टीम करते हुए चिराग़  जल रहे थे।  हवा इतनी भयानक आवाज़ करते हुए चल रही थी मानो तेज चलती हवा और हिलते हुए दीपक की लौ में युद्ध चल रहा हो की कौन किसको पराजित कर सकता है। बहुत ही भयानक रात थी। राजा और रानी अपने कमरे सो रहे थे। रानी को इसी बीच एक सपना आया। सपने में वो देखती हैं कि एक चिड़ा और चिड़िया का जोड़ा महल के बगीचे के सबसे ऊँचे पेड़ पर घोंसला बना कर रहते है। उन दोनो के दो अंडे थे घोसले में जिसका बहुत ही जतन से दोनो मिल कर ध्यान रखते। एक दिन किसी कारण वश चिड़िया मर गयी। चिड़ा अपने दो अंडो के साथ घोंसले में अकेला रह गया। पर कुछ दिनो बाद चिड़ा एक दूसरी चिड़िया को अपने घोंसले में लाता है। और दोनो मिलकर अंडो की देखभाल करने लगते है। पर चिड़िया के मन में खोंट था। एक दिन जैसे ही चिड़ा खाना इकट्ठा करने के लिए बाहर गया, चिड़िया ने दोनो अंडो को ज़मीन गिरा कर फोड़ दिया। 

यह सपना देखने के बाद रानी की आँख अचानक खुली   उनका गला सुख रहा था और उनका मन  बहुत ही  व्याकुल हो उठा। उनको लगने लगा की किसी कारण वश अगर वो एक दिन इस दुनिया में ना रही तो राजा की दूसरी पत्नी भी उन दो अंडो की तरह उनके दोनो प्यारे राजकुमारों को मार डालेगी। इसी चिंता में उनका खाना पीना छूट गया।उनकी तबियत ख़राब रहने लगी। 

राजा के बार बार पूछने पर रानी ने अपनी चिंता का कारण  और उस रात के सपने के बारे में बताया। राजा ने रानी को वादा किया किया ऐसा कभी नहीं होगा। क्यूँकि वो कभी दूसरा विवाह करेंगे ही नहीं। ऐसे ही दिन आगे गुजरते रहे। परंतु एक साल एक भयंकर महामारी आयी। जिसकी चपेट में रानी भी आ गई। राज्य वैद्यों द्वारा बहुत प्रयास करने के बाद भी वो रानी को बचा ना सके। और रानी स्वर्ग सिधार गईं। पूरे राज्य में शोक की लहर दौर गई। राज्य के नागरिकों ने दुःख में एक समय का खाना बंद कर दिया था। 

राजा भी बहुत दुखी रहने लगे। राजा दरबार में अपना पूरा समय नहीं दे पाते थे। और दिन रात मदिरा का सेवन करते रहते और अपने शयन कक्ष में लेटे रहते। पूरा शयन कक्ष को पर्दों से ढक के हमेशा रात्रि का ही माहौल बनाए रहते। राज्य का शासन और काम काज बुरी तरह बिखर गया। उनके कई दरबारियों ने उन्हें दोबारा शादी करने की सलाह दी । परंतु उन्हें रानी को दिया हुआ वचन याद था। 

परंतु अपने राज्य गुरु और शीर्ष मंत्रियो के बहुत समझाने के बाद राजा  भारी मन से पुनः विवाह को तैयार हुए। आस पास के राज्यों से बहुत सारी राजकुमारियों का विवाह प्रस्ताव आने लगा। उनमें से राजा ने अपने गुरु की सलाह से एक राजकुमारी का चयन किया और उनसे विवाह कर लिया। नई रानी को राज महल में लाया गया। उनको वही सम्मान और गरिमा प्राप्त हुई जो पुरानी रानी को था। सब मिल जुलकर ख़ुशी से रहने लगे। राजा भी हमेशा देखते थे की उनकी नई पत्नी उनके पुत्रों शीत और बसंत से बहुत प्यार करती हैं और उनका ख़याल रखती है।

ज्यों ज्यों समय बितता गया नई रानी के मन के अंदर एक डर आने  लगा कि बड़े पुत्र होने के कारण शीत और बसंत को ही राज पाठ मिलेगा। फिर उनके बाद उनके बच्चों को। नई रानी के बच्चों को कोई सम्मान नहीं मिलेगा। उनके साथ एक दाश और ग़ुलाम की तरह व्यवहार किया जाएगा। और किसी ने अपना अधिकार माँग तो या तो उसे कारावास या फिर मृत्यूदंड दे दिया जाएगा। नई रानी दुःख और क्रोध से उदास रहने रहने लगी। उन्होंने अपना महल छोड़ कर कोप भवन में निवाश करने लगी।

राजा को जब ये  बात चली की रानी दुःख से कोपभवन में रहने लगी है तो उन्होंने जाकर रानी की मन मनौवल करने की कोशिश की। रानी मानने के लिए तैयार नहीं थी। वो बार बार राजा से आग्रह करती की वो उनके भवन से निकल जाए। राजा भी रानी को बहुत प्यार करते थे। वो उनको इस दुःख वाली हालत में देख नहीं पा रहे थे। उन्होंने रानी को वचन दिया कि जो भी दुःख का कारण है उन्हें बताए और राजा क़सम देते है की रानी द्वारा उसका जो भी उपाय सुझाया जाएगा वो पूरा करेंगे। राजा यह वचन देकर फस गए।इसीलिए शास्त्रों में कहा गया है की भावावेश यानी दुःख,क्रोध और ख़ुशी में कभी भी कोई वचन नहीं देना चाहिए। 

रानी ने अपने दुःख का कारण बताया और वचन स्वरूप बोला की आप दोनो राजकुमारों को राज्य से बाहर निकाल कर जंगल में छोड़ आइए। ताकि मेरे पुत्र को शासन प्राप्त हो। राजा के पास को चारा नहीं बचा तथा पत्नी मोह में वो वचन दे चुके थे। राजा ने भारी मन से अपने दो विश्वास प्राप्त अंगरक्षको को बुलाया तथा उन्हें आज्ञा दी की दोनो राजकुमारों को राज्य से दूर गंडक वन में छोड़ दिया जाए। 

इधर रानी ने  चुपके से इन दो सैनिकों को अपने कक्ष में बुलाया और बोला की जंगल में ले जाकर दोनो राजकुमारों को मार देना वरना ख़ाली हाथ लौटने पर तुम्हें फाँसी पर लटका दिया जाएगा। अगर ये काम कर दिया तो तुम्हें बहुत सारे सोने और हीरो का पुरस्कार दिया जाएगा। अब रानी का दुःख दूर हो चुका था। मन ही मन बहुत प्रसन्न थीं की उन्होंने रास्ते के दो काँटों को हमेशा हमेशा के लिए इस संसार से हटा दिया।

दोनो सैनिकों ने राजकुमारों को रथ में बैठाया और शिकार खेलने के बहाने जंगल में चले गए। अचानक एक जगह सुनसान और घने जंगलो को बीच में रथ को रोका और राजकुमारों को रथ से उतरने को बोला। दोनो राजकुमार रथ से उतर कर एक पेड़ के नीचे खड़े हो गये। सैनिकों ने अपनी अपनी तलवार निकाली और राजकुमारों के पास पहुँचे। सैनिकों के  हाथ में  तलवार थी परंतु उनकी आंखो में आंसुओं के झरने। उन्होंने पूरी बात कुमारों को बताई कि कैसे कैसे उन्हें जंगल में ले जाकर उनका वध करने का आदेश रानी द्वारा दिया गया है। दोनो राजकुमारों को पूरी बात सुन कर उनके पैरो तले से ज़मीन निकल गई। कैसे उनके पिता और सौतेली माता उनके साथ ऐसा कर सकते  थे। उन्होंने तो हमेशा सबके साथ अच्छा ही व्यवहार किया था।क्या भगवान उनको अच्छे कर्मों की सजा दे रहा है। इधर राजकुमारों के आँख में आशु उधर सैनिकों का भी दुःख से बुरा हाल। सैनिकों ने बोला कैसे उन्होंने राजकुमारों को बचपन से लेकर अब तक बड़े होते हुए देखा है। कैसे उन्हें अपनी गोद में खिलाया है। उन प्यारे राजकुमारों के ऊपर उनकी तलवार नहीं चल सकती। भले ही रानी उन दोनो को फाँसी पर चढ़ा दे पर वो राजकुमारों की हत्या नहीं करेंगे। 

अचानक से दूसरे सैनिक के दिमाग़  में कुछ कौंधा और उसने पहले सैनिक के कान में कुछ खुसुर फुसूर किया। दोनो ने राजकुमारों को बोला की वो उन्हें जंगल से सीमा के उस पार एक किसान के घर पर छुपा देंगे। और पूरे गाव वालों की बात दिया जाएगा की ये दोनो किसान के बेटे है जो बचपन से अपने ननिहाल में रहते थे और अब अपने पिता के पास उसके खेती में मदद करने के लिए वापस आ गए है।

दोनो राजकुमारों को किसान के घर में सुरक्षित छोड़ कर सैनिक वापस लौटने लगे। रास्ते में जंगल में उन्होंने एक जंगली जानवर का शिकार किया और उसके खून में अपनी तलवार डुबाकर रानी के पास ले गए। और बोला की इंही तलवारों से कुमारों का वध किया है और ये तलवारें उन्ही के रक्त से सनी हुई है। रानी को हर्ष का ठिकाना नहीं रहा। दोनो सैनिकों को पुरस्कार देकर उन्हें वापस भेज दिया और चेतावनी दी की किसी को भी इस बात का पता ना चले की कुमारों का वध हो गया है। समय बितता रहा। राजा की उम्र ढलती जा रही थी। बहुत प्रयाशो के बाद भी रानी को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई। राजा दुखी रहने लगे कि उनके वंश को आगे कौन बढ़ाएगा। नए पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई और पुराने पुत्रों को उन्होंने जंगल में छुड़वा दिया था जहां पर जंगली जानवर उनका शिकार करके मार दिए होंगे। राजा दिन पर दिन और दुःख के गहरे सागर में डूबते जा रहे थे। एक दिन राजा ने अपनी सभा बुलाकर सेनापति को  आदेश दिया कि जंगल में जाकर उनके बेटों की खोज की जाए। तभी उनके प्रधान मंत्री ने राजा को बताया की उनके पुत्रों की नई रानी के आदेश पर जंगल में हत्या कर दी गई थी। नई रानी के डर से कोई भी राजा को ये बात आज तक नहीं बता पाया था।

राजा के ऊपर मानो दुखो का पहाड़ टूट पड़ा, खुले दरबार में राजा फफक फफक कर रोते हुए ज़मीन पर गिर पड़े। उन्होंने सेनापति को आदेश दिया की रानी को बंदी बनाकर लाया ज़ाया और उन्हें मौत के घाट उतार दिया ज़ाय। राजा की आज्ञा का फ़ौरन पालन हुआ। 

राजा दुःख में पागल हो गए थे। उन्होंने एक बड़ी सी चिता सजाने का आदेश दिया। राजा अपने भवन से बाहर निकले और आत्मदाह हेतु चिता की तरफ़ दौर पड़े। राजा आग के अंदर कूदने ही वाले थे की तभी अचानक किसी ने उनका हाथ पीछे से पकड़ लिया। किसने जुर्रत की ऐसा कहकर राजा पीछे मुड़े। उन्होंने देखा के उनके शीत और बसंत ने उनका हाथ पकड़ रखा है। राजा की आँखो में ख़ुशी के आंसू आ गए। और अपने बेटों के आग़ोश में मूर्छित होकर गिर पड़े।

अगले दिन राजा ने सभा बुलवाई। शीत और बसंत को राजा बना दिया गया और राजा अपने राज्य कार्य से मुक्ति लेकर ख़ुशी ख़ुशी अपने पुत्रों के साथ रहने लगे।

written by – KALPANA

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