आँखों में कुछ चैन की बूँदें डालो रात नींद पलक पर आने से कतराती है सारी सारी रैन जगाए जाती है चढ़ जाती है जाने किन आवेगों पर हृदय में उतराते काले मेघों पर नींद बिदक कर फिर यूँ रार मचाती है न हँसती न रोती न ही गाती है बस अनबन सी बातें करते करते ही सारी सारी रैन जगाए जाती है आँखों में कुछ चैन की बूँदें डालो रात नींद पलक पर आने से कतराती है जाने कैसी तड़प निशा में होती है जबकि सारी रात ख़लाएँ1 सोती है अंधेरों को खोल बता कुछ जाओ रात एक थपकी से प्यार जता कुछ जाओ रात इस नगरी में कैसी कैसी कैसी बात घुमड़ घुमड़ कर दिल में छेद बनाती है सारी सारी रैन जगाए जाती है आँखों में कुछ चैन की बूँदें डालो रात नींद पलक पर आने से कतराती है 1-अंतरिक्ष। सागर