जब भारत ने 1947 में स्वतंत्रता पायी तो उस समय की सरकार और नीति निर्माताओ द्वारा भारत की अर्थ्व्यस्था को मिश्रित रखने का निर्णय लिया गया । यानी कि इस व्यस्था में कैपिटलिस्ट ( पूजिवाद ) और सोशलिस्ट (समाजवाद ) अर्थ्व्यस्थाओ के ग़ुणो को शामिल किया गया। हालाँकि कहने को तो ये मिश्रित थी जिसमें पूंजीवाद तथा समाजवाद बराबर बराबर होना चाहिए ,परंतु इसका झुकाव समाजवाद यानी सोशलिस्ट व्यवस्था की तरफ़ ज़्यादा था। सब्सिडी , सरकारी उपक्रम, तथा राशन की दुकाने इत्यादि सोशलिस्ट व्यव्स्था के लक्षण है ।और यह निर्णय उस समय के हिसाब सही भी था क्यूँकि भारत की अधिकतर जनता कृषि आधारित थी तथा ग़रीबी रेखा के नीचे थी । हालाँकि आज भी 2020 में भारत की अधिकतर जनता कृषि पर ही आधारित है । परंतु उस समय हालत और ख़राब थी। सारे उद्योग चौपट पड़े थे । कृषि के क्षेत्र में वर्षों से कोई सुधार नहीं हुआ था। आज़ादी के समय जो उद्योग थे वो मुख्यतः स्टील और कपड़ों के थे। वो भी द्वितीय विश्व युद्ध के कारण क्यूँकि हथियार और यूनफ़ॉर्म बनाने में इन्ही दोनो का प्रमुखता से प्रयोग होता था। जैसा कि ऊपर के पंक्तियो में हम देख चुके है कि हमारी अर्थ्व्यस्था मिश्रित होते हुए भी समाजवाद की तरफ़ झुकी थी । और ये झुकाव साल दर साल बढ़ता ही चल गया यानी कि सब्सिडी बढ़ती गई , घाटे वाले उपक्रम चलते रहे, नए नए सरकारी कारख़ाने बनते गए । हालाँकि 1947 की एक सोच यह भी थी की जिन क्षेत्रों में निजी सेक्टर विकास नहीं कर सकता उन क्षेत्रों को सरकार चलायेगी और जब निजी सेक्टर विकसित हो जाए तो धीरे धीरे ये सब सरकार के नियंत्रण से निकाल कर निजी क्षेत्रों को दे दिया जाएगा । क्योंकि सरकार का काम व्यापार नहीं है उसका काम प्रशासन है।
इन्ही 1947 से 1991 के बीच में कई सारे देशों ने अपनी अर्थ्व्यस्था को मिश्रित या सोशलिस्ट से धीरे धीरे पूंजीवाद की तरफ़ मोड़ना शुरू कर दिया। इन देशों को आज भी asian tigers के नाम से जाना जाता है जैसे की सिंगापुर, मलेसिया, वियतनाम और थाइलैंड इत्यादि । चीन जो कि कॉम्युनिस्ट देश है उसने भी अपनी सरकार तो कॉम्युनिस्ट रखी परंतु अपनी आर्थिक व्यस्था को पूरी तरह से पूंजीवाद में बदल दिया। इन देशों ने ये सब कदम 1965-75 के बीच में उठाए थे। इन देशों ने अपने देश के बाज़ार को बाहरी निवेश तथा समानो के लिए खोला, इंदुस्त्रीयल नितियो में बदलाव, मज़दूर क़ानून में ढील देना प्रारम्भ कर दिया । इससे बाहर की कम्पनीज़ से निवेश तथा कारख़ाने इन देशों में लगना शुरू हो गए। जिससे रोज़गार, टैक्सेशन और निर्यात का अवसर बहुत ही बढ़े स्तर पर बढ़ गया । भारत में भी आर्थिक सुधारो के लिए सुगबग़ाहट चलना प्रारम्भ हो गई। परंतु भारत में उस समय तक या कुछ हद तक आज भी आर्थिक सुधारो को गरीब विरोधी की तरह देखा जाता है । कोई भी सरकार कुछ इस दिशा में कोई कदम उठाती तो विपक्ष या वाम पंथ के अर्थ शास्त्री उन पर टूट पड़ते तथा जनता में उनका ग़लत रूप प्रस्तुत किया जाता। कोई भी सरकार 1991 तक इस दिशा में कोई सख़्त कदम नही उठा सकी । हालाँकि बीच बीच में छोटे मोटे निर्णय समय के हिसाब से लिए जा रहे थे परंतु वो सारे कदम नाकाफ़ी थे ।
समय बीतता रहा और साल दर साल GDP का रेट गिरता चला जा रहा था या फिर बहुत टाइम से एक ही दर यानि कि लगभग 2% के आस पास रहा । इसको ताने के रूप में बाहरी देशों द्वारा हिंदू रेट ओफ़ ग्रोथ यानी ही हिंदू विकाश दर का नाम दिया गया। इसका अन्दाज़ इसी से लगाया जा सकता है कि 1990 तक पाकिस्तान की विकाश दर भारत से ज़्यादा थी। ऐसे करते करते साल आता है 1991 का जब चंद्रशेखर जी की सरकार गिर चुकी थी और कांग्रेस की सरकार बनी श्री पी वी नरसिम्हा राव जी के नेतृत्व में । कमजोर अर्थ्व्यस्था और गिरती विकाश दर के कारण भारत की आर्थिक हालत बहुत कमजोर हो चुकी थी । इसी के साथ आया BOP क्राइसिस यानी की Balnace of Payment crisis। BOP की हालत में किसी देश के पास आयात करने हेतु पैसे नहीं बचते है या फिर बहुत हद तक कम हो जाते है जिससे की केवल महीने या हफ़्ते का ही आयात किया जा सकता है उन पैसों से । आयात के लिए ज़रूरी सामान थे ईंधन तेल, खाद्य तेल, खदायन्न, और मशीनरी इत्यादि । BOP के चलते कोई भी चीजें आयातित नहीं की जा सकती थी। BOP की समस्या को और बढ़ा दिया उस समय हुए खाड़ी युद्ध ने जिसने तेल के दाम और उसकी सप्लाई पर बहुत ही बुरा प्रभाव डाला। खाड़ी युद्ध 1990-91 में इराक़ और उसके पड़ोसी देशों के बीच लड़ा गया था।
मोंटेक सिंह अहलुवलिया जो कि योजना आयोग के चेयरमैन रह चुके है अपनी किताब The Backstage में लिखते है कि 1989-90 में V P सिंह की दौरान उन्होंने आर्थिक सुधारो हेतु एक बहुत ही प्रभावशाली रीसर्च पेपर प्रस्तुत किया था जिसे बाद में चलकर M Document के नाम से जाना गया । इसी पेपर के बारे में मनमोहन सिंह जी लिखते है कि मोंटेक ने जो 1990 में M पेपर प्रस्तुत किया उसका नरसिम्हा राव की सरकार द्वारा लाए गए सुधारो में अहम भूमिका थी । हालाँकि इस पेपर को जब प्रस्तुत किया गया तब इसका बहुत विरोध किया गया। बोला गया कि इस पेपर द्वारा सुझाए गए उपाय केवल उद्योग पतियों का फ़ायदा करेंगे तथा वो एकदम से गरीब विरोघी है । यहाँ पर यह जानना बहुत ज़रूरी है कि जो भी उद्योग के पक्ष में हो वो ज़रूरी नहीं की ग़रीबों के विरोध में हो । जब उद्योग का विकाश होगा तो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से गरीब जनता की भलाई होती है ।मोंटेक सिंह इसी किताब में आगे लिखते है कि उस समय के प्रधानमंत्री V P सिंह उस समय की आर्थिक समस्याओं से अच्छी तरफ़ वाक़िफ़ थे परंतु उनका ध्यान लम्बे फ़ायदे से ज़्यादा छोटे समय के राजनीतिक फ़ायदों में था । तथा वो भी सुधार लाकर अपनी छवि तो गरीब विरोधी की तरह नहीं प्रस्तुत करना चाह रहे थे।
VP सिंह के बाद चंद्रशेखर जी की सरकार आयी , इस सरकार ने सुधारो हेतु बहुत हाथ पाव मारे परंतु एक तो coalistion सरकार और ऊपर से सरकार गिरने का डर कोई भी मज़बूत कदम उठाने से इस सरकार को रोक दिया। इसी बीच 1991 में भारत को 20टन सोना Union Bank of Switzerland को बेचना पड़ा इस शर्त के साथ की 6 महीनो में उसे वापस ख़रीद लिया जाएगा। ब्रिटेन से 600 Milion डौलर के बदले 47 टन सोना गिरवी रखा गया ।
यह समय भारत के सबसे कठिनतम दौर में से एक था। जो कि या तो Make or Break वाली कंडिशन थी। चंद्रशेखर के बाद P V नरसिम्हा राव को भारत का प्रधानमंत्री बनाया गया । नरसिम्हा जी दिमाग़ से बहुत ही कुशल तथा प्रतिभाशाली व्यक्ति थे। वो कई सारी भाषाओं के जानकार थे। यह तक की 1984-89 में मानव संसाधन मंत्री रहते हुए उन्होंने कोडिंग भाषा तक सिखी थी। कोडिंग भाषा जो की कम्प्यूटर सोफ्टवेर बनाने में प्रयोग होती है। नरसिम्हा राव का जन्म 28 जून 1921 को आँध्रप्रदेश के लकनेपालि (Laknepali) नाम के जगह पर हुआ था। इनके द्वारा लिखी गयी किताब The Insider है जिसमें उन्होंने फ़िक्शनल चरित्रों के माध्यम से अपनी जीवनी लिखी है। इनके जीवन के ऊपर एक और किताब The Half Lion श्री विनय सेतुपती जी द्वारा लिखी गई है।
P V नरसिम्हा राव ने मनमोहन सिंह को अपना वित्त मंत्री चुना जो की आगे चलकर 2004-2014 तक भारत के प्रधान मंत्री रहे। मनमोहन सिंह इससे पहले योजना आयोग और RBI में महत्वपूर्ण जगहों पर काम कर चुके थे तथा अपनी योग्यता भी साबित कर चुके थे। प्रधानमंत्री ने अपने वित्तमंत्रि को पूरी योजना के साथ कम करने की छूट दे दी और साथ ही यह भी कहा की आप वित्त सम्भालिए मैं विपक्ष और विरोध को सम्भालूँगा। आइए नीचे के बिंदुओ में देखते है कि क्या क्या निर्णय लिए गए 1991-92 के आर्थिक सुधारो में :
1- पहला निर्णय था फ़िस्कल डेफ़िसिट यानी कि वित्तीय घाटे को 8.5 से घटाकर 6 % के आसपास लेकर आना और इसके लिए जो भी कड़वे और कठिन कदम उठाना पड़े वो लिए जाए।
2- भारतीय रुपए का डॉलोर के मुक़ाबले अवमूल्यन किया जाए जिससे कि हमें निर्यात से ज़्यादा पैसे मिले। बाहर से जो NRI विदेशी मुद्रा भेजते है उनसे ज़्यादा से ज़्यादा रुपए बनाए जा सके। इस आइडिया को नाम दिया गया HOP SKIP AND JUMP। यानी कि पहले धीरे धीरे मुद्रा का अवमूल्यन किया जाएगा फिर बाद में अवमूल्यन दर को और बढ़ा दिया जाएगा।
3- बहुत सारे उद्योग जिनके लिए लाइसेन्स , और कंट्रोल लगता था उनको मुक्त किया गया लायसेन्सिंग और इन्स्पेक्टर राज से जिससे की वो अपनी माँग के हिसाब से उत्पादन बढ़ा सके तथा उसको बाज़ार में बेच सके या फिर उसे निर्यात कर सके।
4- कस्टम ड्यूटी यानी कि शीमा शुल्क को 300% से घटकर उसे 150% या उससे से भी नीचे लाया जाए।
5- खाद यानी कि fertiliser पर सब्सिडी 40% तक कम कर दी जाए।
5- इक्साइज़ ड्यूटी यानी की उत्पादन शुल्क की और कम किया जाए।
6- सेबी SEBI जैसी संस्था को statutory संस्था बनाई जाये जिससे कि उसके अधिकार और क्षमता बढ़े और शेयर मार्केट को बढ़िया से नियंत्रण कर सके।
7- mutual fund इत्यादि को निजी क्षेत्रों में दिया जाए जिससे उनका प्रसार और बढ़ सके।
8- घाटे में जा रहे सार्वजनिक उपक्रमों को या तो निजी क्षेत्रों के हाथ में बेच दिया जाए या फिर उसे बंद कर दिया जाए।
9- बाहर सारे क्षेत्र जिसमें केवल सरकार का अधिकार था उत्पादन के लिए उसमें निजी क्षेत्रों को भी आमंत्रित किया जाए।
10- आयकर शुल्क यानी कि income टैक्स के दरो को घटना तथा उसके स्लैब्स में परिवर्तन।
यह निर्णय उसी तरह था जैसे कि victor hugo के शब्दों में “No Power on earth can stop an idea whose time has come”
अगले 10 सालो में विकाश दर 2 % बड़कर लगभग 7.5% हो गया। यह वही निर्णय था जिससे की भारत में आज भी बाहरी निवेश की कमी नहीं रही। इसके कारण IT सेक्टर, टेलिकॉम सेक्टर, मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर को ताक़त मिली जो आज भी दिन पर दिन बढ़ती चली जा रही है। इन निर्णयों की वजह से भारत IMF का Loan समय से पहले ही चुका दिया और आज तक 1991 के बाद भारत को कभी भी IMF के loan की ज़रूरत नहीं पड़ी।
जैसा के हम अपने ऊपर के पंक्तियो में देख चुके है कि इन निर्णयों का बहुत विरोध हुआ। सरकार की छवि गरीब विरोधी बनाई गई और जनता के बीच बहुत ही unpopular बना दिया गया। इतने सारे अच्छे और प्रगतिशील नीति और निर्णयों के बाद भी नरसिम्हा राव जी 1996 का चुनाव जीत नहीं सके। यह तक कि कांग्रिस पार्टी के अंतहक़लह और राजनीति के कारण उन्हें पार्टी के प्रमुख पदों से हटा दिया गया । गांधी परिवार के हाथ में फिर से पार्टी की चाभी और नरसिम्हा राव को विलेन बनाकर उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया क्यूँकि कांग्रिस में गांधी परिवार से बढ़ी किसी की भी IMAGE नहीं हो सकती। यह तक कि 23 December 2004 को उनकी मृत्यु होने के बाद , केंद्र में कांग्रिस की सरकार होने के बावजूद उनके अंतिम संस्कार की अनुमति दिल्ली में नहीं दी गई। एक पार्टी का प्रधानमंत्री के शव को पार्टी कार्यालय तक में लाने की अनुमति नहीं दी गई। उनके परिवार वालों ने बाद में उनका अंतिम संस्कार उनके गृह प्रदेश आँध्र प्रदेश में किया।
यह साल 1920-21 उनके जन्मदिंन का सौवाँ यानी कि century year है। तेलंगाना सरकार जाह TRS पार्टी सत्ता में उसने पूरे देश के प्रमुख समाचार पत्रों में पहले पन्ने पर नरसिम्हा राव जी के बर्थ cenetary पर बढ़ा बढ़ा विज्ञापन दीया। चलो जिस व्यक्ति को congress कभी सम्मान नहीं दे साक़ी कम से कम उनके प्रदेश में उनकी विपक्षी पार्टियों ने तो सम्मान देना प्रारम्भ किया।
अभी हाल ही में 23 जुलाई 2020 को कांग्रिस प्रमुख सोनिया गांधी, राहुल गांधी तथा मनमोहन सिंह ने राव साहब की तारीफ़ करते हुए बड़े बड़े पत्र मीडिया में सर्वजानिक किए। 23 जुलाई 1991 को वही क्रांतिकारी बजट प्रस्तुत किया गया था जिसने आर्थिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण बदलाव लाए। अब इस बात के भी मायने निकले जा रहे है की जिस पार्टी ने उनकी कद्र कभी नहीं की आज उनकी तारीफ़ में पत्र क्यू जारी कर रहे है। इस विषय में कुछ विशेषज्ञों और जानकारो का मानना है की उनके डर है कि नरसिम्हा राव की legacy और उसके साथ साथ 1991 के सुधारो का क्रेडिट अन्य पार्टियाँ ना छिन ले जैसे की भाजपा ने सुभाष चंद्रा बोस और सरदार बल्लभ भई पटेल की legacy को अपना लिया है। सब राजनीति है भाई साहब, राजनीतिक लाभ के लिए किसी को भुला दो और जब ज़रूरत पढ़े तो याद कर लो।
PV Narsimha Rao ‘modern day’s chanakya’
Well explained
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