अभी तक आपके आपने जो भी समाचार चैनल या टेलिविज़न पर देखा है मुझे पूर्ण विश्वास है की आप ने उस समाचार को भारत के नज़रिए से देखा होगा जैसे की नेपाल ने भारत के हिस्से को अपना बताते हुए नया नक़्शा जारी कर दिया। यह विवाद दो क्षेत्रों को लेकर है पहला है कालापानी क्षेत्र जो की उत्तराखंड में आता है और दूसरा है सुस्ती क्षेत्र जो की बिहार और उत्तर प्रदेश के सीमा से लगा हुआ क्षेत्र है। भारत और नेपाल के बीच 1751 किलो मीटर की लम्बी सीमा है जिसमें से 98% पहले से ही Demarcated है यानी कि दोनो पक्षों की तरफ़ इस पर कोई विवाद नहीं है। और 2 % सीमा जो demarcated नहीं है उसमें कालापानी और सुस्ती क्षेत्र आते है।इस लेख में हम कालापानी विवाद के बारे में विस्तार से जानेंगे और इस विवाद को दोनो देशों के नज़रों से देखा जाएगा। क्यूँकि किसी भी नतीजे पर पहुचने से पहले दोनो पक्षों के तर्कों को जानना बहुत ज़रूरी है। आगे बढ़ने से पहले हम इसके वर्तमान, भौगोलिक और ऐतिहासिक स्थिति पर नज़र डालते है।
कालापानी कहा पर स्थित है ( where is kalapani)
कालापानी उत्तराखंड प्रदेश के पिथौरा गढ़ ज़िले में स्थित है जो कि नेपाल, भारत और तिब्बत (चीन) की सिमाए जहां मिलती है उसके पास स्थित है। इस क्षेत्र को trijunction कहा जाता है जहां पर तीन देशों की सीमाए आपस में मिलती है। नेपाल के हिसाब से यह क्षेत्र उसके सुदूर पश्चिम प्रदेश के दारचूला प्रदेश के अंतर्गत आती है। और भारत के हिसाब से यह क्षेत्र पिथोरागढ़ ज़िले के अंतर्गत है। यहाँ पर ध्यान देने योग्य बात ये है कि कालापानी को दोनो देशों के नक़्शों में कई दशकों से दर्शाया जा रहा था। जो नया क्षेत्र नेपाल द्वारा नए नक़्शे में शामिल किया गया है वो है लिपुलेख दर्रा और लिंपिया धूरा जो की इसी कालापानी के आस पास आते है । कालापानी का क्षेत्र 36वर्ग किलो मीटर का है जबकि नेपाल के नए नक़्शे के हिसाब से लिंपिया धूरा और लिपुलेख को मिलाकर 336 वर्ग किलो मीटर का क्षेत्र नेपाल के अंतर्गत आना चाहिए जिसको भारत ने 1961 से अपने क़ब्ज़े में कर रखा है।
कालापानी को नदी काली का उद्गम स्थल की तरह माना जाता है । काली नदी का नाम ज़ेहन में रखिएगा आगे के लेख में इसका चर्चा बहुत बार आने वाला है।
कालापानी और काली नदी का नेपाल और भारत के बीच में ऐतिहासिक परिपेक्ष (Histroy behind kalapani and kali river)
इतिहास में वापस जाने पर हमें हमें लगभग 1800 के आसपास जाना पड़ेगा इस समय तक ब्रिटिश इंडिया शासन अपना प्रभुत्व मद्रास, बेंगाल होते हुए पूरे अवध राज्य पर क़ब्ज़ा कर चुका था। अवध राज्य को आप मोटे तौर पर आज के हिसाब से आज का उत्तरप्रदेश समझ सकते है। बिहार इत्यादि बंगाल का हिस्सा थे। अब ब्रिटिश शासन अवध राज्य से आगे अपना प्रभुत्व बढ़ने का प्रयाश कर रहा था। इसी समय में नेपाल के राजा थे राजा पृथ्वी नारायण शाह जिनकी गिनती नेपाल के महान राजाओं में होती है । बहुत ही वीर और महत्वकांक्षी अपने समय में इन्होंने पूरे नेपाल देश को एक कर लिया था। इसकी सीमा पूर्व में सिक्किम से प्रारम्भ होकर गरवाल और कुमायूँ क्षेत्र तक आती थी। 1800 के आसपास अवध में ब्रिटिश शासन तथा गरवाल कुमायूँ में राजा पृथ्वी नारायण शाह एक दूसरे के प्रभुत्व और प्रसार पर रोक लगाती रही। 1814 में ब्रिटिश भारत तथा नेपाल के बीच युद्ध हुआ जो कि 2 साल तक चला तथा इसे भारत -नेपाल युद्ध के नाम से जाना जाता है। इस युद्ध में नेपाल की पराजय हुई और इसी संदर्भ में नेपाल और भारत के बीच 1815 में समझौता हुआ जिसे सुगौली का समझौता नाम दिया गया। इस संधि के हिसाब से नेपाल को गरवाल और कुमायूँ से पीछे हटना था। तथा भारत और नेपाल के बीच में काली नदी को सीमा के तौर पर माना गया। यानी कि काली नदी के पश्चिम की तरफ़ भारत तथा पूर्व की तरफ़ नेपाल। हालाँकि की इस समझौता के साथ कोई नक़्शा नहीं जोड़ा गया था। यहाँ पर याद रखिए की काली नदी का उद्गम कालापानी के आसपास है।इस क्षेत्र से ऊपर के बारे में संधि में चर्चा नहीं हुई। भारत का मानना है है चुकी काली नदी का मार्ग वास्तव में कालापानी से ऊपर नहीं है परंतु उसका watershed यानी कि जलीय क्षेत्र कालापानी के ऊपर से आता है अतः स्वाभाविक रूप से कालापानी का जलीय क्षेत्र का पश्चिमी क्षेत्र भारत का हिस्सा है। watershed या जलीय क्षेत्र वह है जहां से इकट्ठा जल नदी में आता है।नेपाल का इसके उलट मानना है की कालापानी से ऊपर के क्षेत्र हमेशा से नेपाल का हिस्सा रहे है तथा 1815 की सुगौली संधि में इसके बारे में कोई बातचीत नहीं थी। अतः कालपानी और उसके ऊपर का हिस्सा नेपाल का है।
काली नदी के पथ के बारे में कभी कोई सहमति बनी ही नहीं। क्यूँकि यह नदी धीरे धीरे अपना रास्ता बदलती रहती है। इस नदी के उद्गम स्थल को संधि में परिभाषित नहीं किया गया था। सन 1869-70 ब्रिटिश नक़्शा कारों द्वारा कालापानी के ऊपरी हिस्से का सर्वेक्षण किया गया तथा कालापानी क्षेत्र को भारत का हिस्सा बताया क्यूँकि नदी काली में पानी इन्ही क्षेत्रों से आता है। और तबसे आजतक कालापानी भारत के नक़्शे में दिखाया जाता रहा है। इसके बारे में नेपाल कहता है कि ब्रिटिश इंडिया ने यह परिवर्तन अपने रणनीति के तहत किया तथा उसमें नेपाल की कभी सहमति ली नहीं गई। क्यूँकि ब्रिटिश लिपुलेख दर्रे से होकर तिब्बत के साथ अपना व्यापार बढ़ाना चाह रहे थे। इसी संदर्भ में आपको बताते चले कि मानसरोवर यात्री इसी दर्रे द्वारा हर साल तिब्बत में प्रवेश करते है।
वर्तमान में यह विवाद क्यू उभर कर आया ( Dispute of kalapani in present day)
नेपाल कहना है भारत ने 1962 में चीन के साथ युद्ध में लिपुलेख दर्रे पर अपनी सेना की चौकी बनाई थी तथा दर्रे को पूरी तरह बंद कर दिया गया था। चूँकि उस समय यह दोनो देशों के सुरक्षा का सवाल था नेपाल ने इस बात पर विरोध दर्ज नहीं कराया। भारत के अनुसार यह हमेशा से ही भारत का हिस्सा था। हालाँकि यह पर ध्यान रखने वाली बात है की कालापानी को कई दशकों से दोनो देशों के नक़्शों में दिखाया जाता रहा है। नया विवाद लिपुलेख तथा लिंपियाधुरा को लेकर है। नेपाल ने पहली बार 1997 में श्री I K गुजराल के सरकार समक्ष यह बात टेबल पर रखी। वर्तमान में 2019 में भारत ने धारा 370 हटाने के बाद नया नक़्शा जारी किया । जिसमें कालापानी, लिपुलेख तथा लिंपियाधुरा को पुराने नक़्शे के हिसाब से हाई भारत के नए नक़्शे में भी दिखाया गया। उसके कुछ महीनो बाद भारत के रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह जी ने कालापानी से लिपुलेख के बीच नयी सड़क का उद्घाटन किया जो नेपाल के गले से नीचे नहीं उतरी।
क्या कारण हो सकते है इस विवाद को अभी उठाने के पीछे (why nepal is raising kalapani dispute)
इस विवाद को इस समय पर उठाने के कई कारण हो सकते है-
- नेपाल में प्रधानमंत्री ओली की सरकार को नापसंद किया जाने लगा तथा कई जगह इनकी सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन प्रारम्भ हो चुके थे। देश की जनता को ध्यान देश के सीमा वाले मुद्दे पर ले जाने तथा अपनी सरकार के विरुद्ध होने विरोधों को कम करने के लिए।
- जब यह मुद्दा उठाया गया तो भारत और चीन का गलवान क्षेत्र में विवाद चल रहा था । चीन के शह में आकर भारत के ऊपर दबाव डालने हेतु नेपाल ने यह विवाद उठाया।
- नेपाल में विरोधी पक्ष सहित जनता का कुछ वर्ग इस मामले को कई महीनो से उठा रहा था तथा नेपाल सरकार के ऊपर दबाव बना रहा था की इस नेपाल अपना नया नक़्शा जारी करे।
- जनता का ध्यान अपनी कमियों से हटाना हो तो उसका ध्यान किसी और बड़े मुद्दे की तरफ़ मोड़ने हेतु।
- नेपाल की यह भी शिकायत रही ही की उसने भारत के साथ कई सालो से यह मामला उठाने की कोशिश की परंतु भारत ने इस पर कभी नहीं ध्यान दिया ना को काम किया।
कालापानी विवाद पर दोनो पक्षों की बहस ( arguements of Nepal and India on Kalapani dispute)
नेपाल के भौगोलिक कार श्री मंगल सिद्धि मानन्धर और हृदय लाल कोईराला के मुताबिक़-
- सुगौली समझौता (1815) के साथ को नक़्शा नहीं जोड़ा गया था। उस समय के हिसाब से काली नदी की सीमा माना गया।
- 1857-71 के बीच में ब्रिटिश भौगोलिक करो द्वारा इस काली नदी के स्तिथि को जानबूझकर बदला गया।
- काली नदी और उसके आसपास के जगहों का नाम ब्रिटिश द्वारा जानबूझकर परिवर्तित किया गया जिससे की उसके आसपास के हिस्सों को भारत का हिस्सा दिखाया जा सके।
- नेपाल की सीमा 5.5 kilometer और आगे होनी चाहिए अभी वर्तमान हिस्से से।
- 1961 से पहले कालापानी का सारा ज़मीनी काग़ज़ और revenue दारचूला ज़िला के मुख्यालय में रखा जाता था। जिसे की भारत ने 1961 के बाद बंद करवा दिया।
- 1951 की नेपाली जनगणना में कालापानी के लोगों की गणना नेपाल के नागरिकों के रूप में हुई थी।
- 1959 में हुए प्रथम नेपाल लोकतांत्रिक चुनाव में कालापानी के लोगों ने भाग लिया था।
- 1961 से भारत अपनी चौकी बनाया हुआ है लिंपियाधुरा और कालापानी में जिसे आजतक नहीं हटाया गया है।
भारत के श्री आलोक कुमार गुप्ता के मुताबिक़-
- 1815 में काली नदी को सीमा माना गया परंतु उसका उद्गम और ऊपरी हिस्से को पूरी तरह व्याख़ित नहीं किया गया था। उस नदी का ऊपरी हिस्सा कालापानी के ऊपर से आ सकता है।
- 1870 में ब्रिटिश इंडिया शासन ने सर्वे में पाया कि इस नदी का ऊपरी हिस्सा कालापानी के और ऊपर जाता है और इसका जलीय क्षेत्र कालापानी और लिपुलेख के बीच का है। अतः यह पूरा हिस्सा भारत के अंतर्गत आता है।
- यह क्षेत्र 1870 से ही भारत के नक़्शे में दिखाया जा रहा है।
- भारत के अनुसार उसके पास 1830 के काग़ज़ात है जो की कालापानी क्षेत्र के रेवेन्यू records है। इन दस्तवजो के मुताबिक़ भारत 1830 से ही रेवेन्यू इकट्ठा करता आया है इस क्षेत्र से। इस 1830 के काग़ज़ के मुताबिक़ कालापानी पिथोरा गढ़ ज़िले का हिस्सा है।
नेपाल और भारत के बीच सम्बन्ध बहुत गहरे तथा पुराने रहे है। नेपाल के वर्तमान प्रशासन द्वारा छोटे राजनीतिक लाभ के लिए उठाया गया कदम भविष्य में इन देशों के सम्बन्ध पर बहुत ही बुरा प्रभाव डालने वाले है। एक बार कोई भी चीज़ नक़्शे में दिखाने के बाद वहा की कोई भी सरकार उसे मिटा नहीं सकती। इससे ना तो कुछ नेपाल को मिलने वाला है नहीं भारत को। क्यूँकि इस जगह पर एक देश का प्रशासन है उसे नहीं उस देश की सरकार छोड़ेगी नहीं वहाँ की जनता छोड़ने देगी।
भारत को भी नेपाल द्वारा भूतकाल में उठाए गए इन मुद्दों पर समझदारी और गहराई से बात करनी चाहिए थी।जैसा कि नेपाल का आरोप है की भारत ने इन मुद्दों की तरफ़ कभी अपना समय और ध्यान नहीं दिया। अगर भारत द्वारा इसको गम्भीरता से लिया जाता तो शायद नेपाल यह कदम नहीं उठाता। यह विवाद केवल अब दो सरकारों के बीच में नहीं रहा बल्कि अब यह दोनो देशों के नागरिकों के बीच भी नफ़रत उत्तपन्न कर रहा है। जिससे भविष्य में पटरी पर लाना अभी के हिसाब से बहुत ही मुश्किल लग रहा है।
It’s good to read Nepal’s perspective too.
Excellent explanation