किसी रात इक ख़्वाब था उतरा लेकर अपना ताना - बाना फूल सितारे रंग सभी से गुनने बुनने एक तराना पलकों पर यूं दस्तक़ देकर कानों में एक बात सुनाकर आध - अधूरा पैकर1 बुनकर फिर जाने वो किधर उड़ा था
तब से ही मैं रात बिछाकर पलकों पर उस ख़्वाब का रस्ता देख रहा था जागा सोया पूरा पैकर कैसा होगा सोच रहा था
यूं ही कितनी रातें कितनी सांसें जागी धड़कन जागी सुलगी सुलगी आहें जागी
फिर एक दिन एक ख़्वाब सा साया लहर लहर सा छूकर गुजरा जाने क्या था तेरा चेहरा कितना चंचल - शोख़ सुनहरा उम्मीदों से हँसी बनी थी मुस्कानों में चाँद सजा था ख़्वाब सी आंखें! ख़्वाब सा चेहरा!
ख़्वाब का ताना बाना फिर से पलकों ऊपर उतर चला था जागी आँखों तैर रहा था
तुमको छूकर अब मैं जाना तुमसे सारे फूल सितारे रंग तराना तुमसे ही तो ख़्वाब बना ये पैकर भी सेराब2 हुआ ये
1. आकृति 2. तृप्त
द्वारा- सागर 25.04.2021