वोल्गा से गंगा पुस्तक को हिंदी साहित्य के अद्भुत कृतियों में गिना जाता है। यह एक शानदार किताब है जो अपने आप में कहानियो के साथ साथ आर्यों का पिछले 8000 सालो का इतिहास समेटे हुए है। इसमें कहानिया 6000 ईसा पूर्व से प्रारम्भ होकर 1942 तक चलती है। हर काल खंड के लिए अलग अलग 20 कहानिया है। जो अलग अलग क्षेत्रों में घटित होती है।कहानिया आर्यों के समाज के विकास को क्रम बद्ध करती है।
इनको पढ़ते हुए ऐसा लगा कि हम लोग अभी तक इस इतिहास से कितने नावाक़िफ़ है। मुझे पूरा विश्वास है कि इस किताब को पढ़ने के बाद आपको आर्यों के इतिहास के बारे में जानकारी काफ़ी हद तक बढ़ जाएगी।इस किताब के लेखक राहुल सांस्कृत्यायन ने ये भी बताया है, की जब ये किताब प्रकाशित हुई थी तो इनके आलोचकों ने इस पुस्तक पर प्रतिबंध का माँग उठाया था। आलोचकों के मुताबिक़ ये किताब धर्म और समाज विरोधी थी।
वोल्गा से गंगा पुस्तक -किसके बारे में
इसकी 20 कहानिया अलग अलग काल खंड के हिसाब से अलग अलग चरित्रों और समाज को केंद्रित करते हुए लिखी गई है। पुस्तक की कहानिया मुख्यतः मातृ सत्ता, धार्मिक कर्मकांड, समाज में मौजूद कुरीतियाँ और उस समय के सामान्य नागरिको के जीवन और संघर्ष से प्रेरित है। यह पुस्तक कहानी के माध्यम से आर्यों के उत्तरी यूरोप से प्रारम्भ होकर मध्य यूरोप, मध्य एसिया और भारत तक पहुचने और आर्यों के विस्तार के इतिहास को समेटे हुए है। इन कहानियो को लिखने के लिए लेखक ने बहुत सारे देशों में प्रचलित प्राचीन पुस्तकें और लोक कथाओं का सहारा लिया है।
एक कहानी से दूसरी कहानी के काल खंड में अंतर कुछ सौ सालो का है। जैसे प्रथम कहानी 6000 BC की है तो आगे की 3500 BC और 2500 BC की इत्यादि। इस पुस्तक वोल्गा से गंगा तक की कहानी का अंत 1942 की कहानी के साथ होता है। इन कहानियो को पढ़ के लगा कि इस पर एक अच्छी वेब सिरीज़ भी बनाई जा सकती है। जो आज के युवायों यानी कि aajkayouth को अपनी तरफ़ आकर्षित कर सकती है। इन कहानियो पर चर्चा हम आगे लेख में करेंगे। इससे पहले आइए देखते है इसके लेखक महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन के बारे में।
लेखक
वोल्गा से गंगा के लेखक महान साहित्यकार राहुल सांस्कृत्यायन जी है। विश्व के घुमक्कड़ शास्त्र के विद्वानो में इनका नाम प्रमुखता से लिया जाता है। 1958 में साहित्य अकादमी पुरस्कार और 1963 में पद्म श्री के पुरस्कार से नवाजित हो चुके है। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ ज़िले में हुआ था। बचपन का नाम केदार नाथ पांडेय था। बचपन से ही अद्भुत प्रतिभा के धनि थे। 9 साल की उमर से पहली बार घर से भागे थे। और यह भागने का क्रम जीवन में कई बार दोहराया। इन्होंने अपने जीवन काल में दुनिया के कई सारे देशों जैसे रशिया, ईरान, चीन, श्रीलंका इत्यादि देशों का भ्रमण किया। उनके बारे में अपने यात्रा वृतांत में बहुत ही खूबसूरत ढंग से उतारा। कई सारी देशी और विदेशी भाषाओं के भी जानकार थे।
देश के स्वतंत्रता आंदोलन में भी इन्होंने भाग लिया। अंग्रेजो से बचने के लिए इन्होंने 6 बार तिब्बत की यात्रा करी। और जाने के लिए सबसे कठिन रास्ता चुनते थे जिससे अंग्रेजो की नज़र उनपर ना पड़े। इन्होंने तिब्बत से बहुत सारी भारतीय मूल की पेंटिंग, लिपियाँ और साहित्य इत्यादि को वापस ले आया। इन ग्रंथों को 12वी या 13वी शताब्दी में बौद्ध भिक्षु अपने साथ बचाकर तिब्बत ले गए थे। ये वो समय था जब भारत पर बाहर से मुस्लिम आक्रांताओं का हमला हो रहा था। राहुल जी द्वारा लाई गई बहुत सारी लिपियाँ आज भी पटना म्यूज़ियम में सुरक्षित रखी है।
कहानिया वोल्गा से गंगा पुस्तक में-
हर कहानी अपने आप में इतिहास को समेटे हुए है। उस समय के आसपास समाज की संरचना। रहन सहन, समूहों और लोगों के द्वन्द के ऊपर।
पहली कहानी है निशा जो की लगभग 6000 BC की कहानी है। यह कहानी उत्तरी ध्रुव यानी उत्तर यूरोप के आस पास के बर्फ़ से ढके भौगोलिक क्षेत्र में घटित होती है। यह क्षेत्र वोल्गा नदी का ऊपरी हिस्सा है। वोल्गा आज के रशिया देश की प्रमुख नदी है।इस समय एक ही परिवार होता था। क़बीला या समूह नाम की कोई चीज़ नहीं थी।इनका आपस में दूसरे परिवारों से कोई सम्बंध नहीं रहता था। शिकार, आनंद, खाना, और सम्बंध एक ही परिवार में होता था। जो भी महिला जो परिवार में सबसे शक्तिशाली और बुद्धिमान थी। वह परिवार का प्रमुख होती थी।
मुख्य महिला ही सब निर्णय लेती थी। वह परिवार के किसी भी पुरुष के साथ सम्बन्ध बना सकती थी। चाहे वो उसका बेटा हो या भाई (आज के समाज हिसाब से)। आजीविका मुख्यतः शिकार पर निर्भर थी। यह कहानी ऐसे ही एक परिवार की कहानी है जिसकी मुखिया है निशा। उनके शिकार करने, निर्णय, सम्बंधो के ऊपर यह कहानी है।
दूसरी कहानी है- दिवा। जो 3500 BC के आसपास घटित होती है। इस कहानी में निशा के वंशज वोल्गा के केंद्र तट तक आ चुके है। और वही अस्थाई रूप से निवास करते है। इस कहानी में परिवार बढ़ कर क़बीला का रूप ले लिया है। इस क़बीले का नाम है निशा-जन। अब इस क़बीले के लोग कुत्तों का प्रयोग पालतू जानवर के रूप में करने लगे है। कहानी के नायक है दिवा और सुर। दोनो प्रेमी है और भाई बहन भी। दिवा इस क़बीले की प्रमुख है।इस समय तक एक और क़बीला आ जाता है उषा-जन। निशा जन और उषा जन में चरवाही की ज़मीन को लेकर युद्ध होता है।
हथियारों में पत्थर की जगह ताम्बे ने ले ली है। जो पत्थर के हथियारों से ज़्यादा ख़तरनाक है। इस युद्ध में संख्या बल अधिक होने से निशा जन विजयी होते है। और उषा जन क़बीले का जो भी बचता है उसे मौत के घाट उतार दिया जाता है। चाहे वो बृद्ध हो या बच्चे। बूढ़ों के गले में पत्थर बांध कर वोल्गा में डूबा दिया जाता है और बच्चों को पत्थर पर पटक कर मार दिया जाता है।
तीसरी कहानी घटित होती है मध्य एसिया पामीर के पठार के आस पास। समय है 3000 BC का। इस समय लोग घोड़ों और गायों का प्रयोग करने लगे है। घोड़ों और गायों को सम्पन्नता से जोड़ कर देखा जाता है इस युग में। अब केवल जंगली जानवर ही नहीं बल्कि गाय और घोड़ों के मांस का भी सेवन किया जाता है। मदिरा के रूप में सोमरस काफ़ी लोकप्रिय है। भुने हुए बछड़े के मांस को सबसे स्वादिष्ट माना जाता है।
इस समय अब एक पुरुष को कई पत्निया रखने का अधिकार मिल चुका है। धनी लोगों के घर में लोग काम करते है, पर ग़ुलाम की तरह नहीं बल्कि सहयोगी की तरह। उन्हें तनख़्वाह नहीं मिलती बल्कि जो उपज या अर्जित आय है, उसका हिस्सा मिलता है। अब समाज ने स्त्री नायिका से हट कर गणो का नेतृत्व स्वीकार किया है। ये गण उस कबीले के चुने हुए लोग होते थे। इसमें पुरुष और स्त्री की बराबर भागीदारी होती थी। सारे निर्णय ये गण आपस में सर्व सम्मति से करते थे। शायद यही से गणतंत्र की शुरुआत हुई थी।
चौथी कहानी है पुरहूत की। घटना स्थल है ताजिकिस्तान क्षेत्र। जातीय है हिंदी ईरानी। काल खंड है 2500 ई. पू. का।अब तक बहुत सारे बड़े बड़े कबीले बन चुके है। जो अलग अलग वंश के नाम से जाने जाते है। इन वंशो का बड़े बड़े क्षेत्रों पर क़ब्ज़ा है। ये क्षेत्र लगभग एक देश के बराबर है। सब वंशो में अलग अलग रीतियाँ है। कुछ राज्यों में लोग ग़ुलाम की तरह काम करते है। कही कही पर गण को हटाकर राजा ने जगह ले लिया है। ये राजा अपने लोगों को भाई बंधु की तरह नहीं बल्कि निम्न स्तर की तरह व्यवहार देता है। यहा से ग़ुलाम प्रथा और जाती व्यवस्था प्रारम्भ होती है। हालाँकि कई सारे कबीलों या राज्यों में ऐसी बुराई नहीं आई है। वहाँ पर पहले की तरह ही गण राज्य करते है। और स्त्रियों का उचित स्थान भी है।
इन गणो वाले राज्य का सेना नायक जो होता था। वह गणो के आदेश पर सेना का नेतृत्व करता है। ऐसे ही एक महान सेना नायक इंद्र का वर्णन आता है। इंद्र ने अपने कबीले के लिए बहुत सारे युद्ध लड़े और शानदार विजय दिलाई। इस सेना नायक इंद्र नाम बहुत सारे देशों में प्रसिद्ध हुआ। कुछ पीढ़ियों बाद लोग इस इंद्र की देवता की तरह पूजा करने लगे।
आगे की कहानी वेद और पुराण कैसे विकसित हुए उनके ऊपर है। समाज में आर्यों ने कुछ मूल निवासियो को ग़ुलाम बना कर कैसे कैसे जातियों में बाटा। ब्राह्मण और क्षत्रिय कैसे बने और समाज में दोनो आपस में मिलकर अपना प्रभुत्व क़ायम कर सके उस पर भी कुछ कहानिया है।
इसी तरह आगे की कहानिया आगे बढ़ती है, समाज के परिवर्तन और क्षेत्र के परिवर्तन के साथ। क्षेत्र अब ऊपरी स्वात क्षेत्र जो की फ़िलहाल के सुदूर ऊपरी पाकिस्तान में स्थित है, फिर गांधार क्षेत्र (अफगनिस्तान), से चलकर कुरु पांचाल क्षेत्र यानी की आज के पंजाब हरियाणा तक आ चुका है। यानी की आर्यों का विस्तार लगभग 1500 BC तक पंजाब हरियाणा तक हो चुका है। 700 BC की कहानी घटित होती है पाटलिपुत्र में। यानी की इस समय तक पाटलिपुत्र यानी की गंगा के तट तक आर्य चुके है।
इसके बाद की कहानिया पूरी तरह से भारत खंड में घटित होती है। भारत खंड से मतलब अफगनिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल, म्यांमार और पूरे आज भारत से है।
हर कहानी बदलते समय के साथ भारतीय समाज और उनमें आए हुए क्रमशः परिवर्तन पर आधारित है। आख़िरी कहानी का अंत 1942 हुए आंदोलन, सोशलिस्ट विचार धारा में आए परिवर्तन पर समाप्त होती है।
मेरा सुझाव
मेरे सुझाव से आपको यह किताब ज़रूर पढ़नी चाहिए। वोल्गा से गंगा पुस्तक का अलग अलग भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। और सारी भाषाओं में उतनी ही पसंद की जाती है।लेखक ने कहानिया अपने मनगढ़न्त तरीक़े से नहीं लिखी है। कुछ कहानिया राहुल जी के जगह जगह विदेश भ्रमण के दौरान उनके हाथ लगी। तो कुछ कहानियो को उन्होंने प्राचीन पुस्तकों को आधार बना कर लिखा है। आर्यों के इतिहास और उनके विकास के बारे हम सबका विचार एक दूसरे से अलग हो सकता है। अलग अलग लेखक अलग तरीक़े से चीजें प्रस्तुत करते है। लेकिन इन कहानियो के माध्यम से इतिहास का एक अन्य पहलू भी जाना जा सकता है। वह इतिहास जो आप और मुझसे अभी तक अछूता रहा है।
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शानदार। आपने दिल मे किताब पढ़ने की चाह जगा दी।
Bahut acha lekh 🙏
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