स्थिति अभी तक
अभी हाल में आपने देखा होगा की मुख्यतः पंजाब और हरियाणा के किसान, सांसद द्वारा पास क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हेतु सड़कों पर उतर आए है। विपक्षी दलो द्वारा 25 september 2020 को भारत बंद का आह्वाहन किया गया। इन किसान विरोधों के पीछे मुख्य और छिपे हुए क्या कारण है? इस लेख हम इस पर विस्तार से जानेंगे।
भारत सरकार ने कृषि क्षेत्र से सम्बंधित तीन नए क़ानून लोक सभा तथा राज्य सभा से पास किए है। ये तीनो क़ानून है-
1- Farmer’s Produce Trade and Commerce ( Promotion and Facilitation)
कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य ( सामवर्धन एवं सहायता)
2- The Farmers (Empowerment and Protection) Agreement on Price Assurance and Farm Services Bill- 2020 मूल्य आश्वासन और कृषि सेवावों पर किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) समझौता -2020
3- The Essential Commodities (Amendment) Bill 2020 आवश्यक वस्तु (सुधार) बिल -2020
इन तीनो क़ानून के विरोध में मुख्यतः पंजाब, हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसान प्रदर्शन कर रहे है तथा सरकार से इसको वापस लेने के लिए कहा जा रहा है।यह पर देखने योग्य बात है कि केवल पंजाब तथा हरियाणा में ही प्रदर्शन क्यू हो रहा है बाक़ी सब राज्यों में क्यू नहीं। कुछ राज्यों का ये भी कहना है कि कृषि राज्य का विषय है, इसमें केंद्र सरकार को बेवजह दख़ल नहीं देना चाहिए।
किसानो के विरोध को समझने के लिए पहले आपको निम्न चीजों के बारे में जानना ज़रूरी है, हम इंही बिंदुओ के माध्यम से किसानो के विरोध को समझने की कोशिश करेंगे। इंही बिंदुओ से हम ये भी समझेंगे कि किस तरह किसानो के लिए ये फ़ायदेमंद है या नुक़सान दायक। ये बिंदु निम्नलिखित है-
1- MSP(Minimum Support Price यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य।
2- APMC ( Agricultural Produce Market Committee) कृषि उत्पाद बाज़ार मंडी
3- APMC ट्रेड टैक्स और आढ़तिया
4- Contract Farming ( अनुबंध पर उत्पादन )
5- Bargaining Power of Farmers ( व्यापारियों से किसान की सौदे करने की क्षमता)
6- Storage of Food Commodities ( खाद्य संग्रहण)
7- Changed Definition of agri traders and Trading area ( कृषि व्यापार और व्यापार क्षेत्र का बदला परिभाषा)
MSP(Minimum Support Price यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य–
भारत सरकार समय समय पर गेंहू, चावल, दालों और जंगली उत्पादों के लिए समय समय न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी करती है। इसका मतलब ये है कि इन चीजों को इनसे कम दाम पर सरकार द्वारा ख़रीदा नहीं जा सकता। यह लगभग लागत मूल्य का डेढ़ गुना होता है। हालाँकि इससे ज़्यादा के मूल्य पर या कम दाम पर व्यापारियों द्वारा इसकी ख़रीद की जा सकती है। जबकि सरकार इसकी गारंटी लेती है कि वो MSP मूल्य प्रदान करेगी। ना उससे ज़्यादा या ना कम। किसान अपना माल कही और बेच नहीं पता है तो FCI इत्यादि सरकारी अजेंसिया अपने ज़रूरत के हिसाब से इसी MSP पर APMC मंडियो के माध्यम से किसानो से अनाज ख़रीद करती है। परंतु मात्र 6% किसान ही MSP पर अपनी फसल बेच पाते है।।हालाँकि इस बार सरकार ने नए पास किए गए कृषि सुधार क़ानूनो में इस MSP का कही वर्णन नहीं किया है। जिससे यह भावना फैल गई है कि सरकार MSP को खतम करने जा रही है। ये हो भी सकता है कि सरकार भविष्य में किसानो के अनाज को MSP पर ख़रीदने की बाध्यता खतम करनी चाहती हो। इससे किसानो में आक्रोश की भावना आई है कि भविष्य में उनके अनाज MSP से भी कम दाम पर निजी व्यापारियों द्वारा ख़रीदा जाएगा। हालाँकि इसके बाद केंद्र सरकार ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर के कहा कि भविष्य में MSP हमेशा की तरह जारी रहेगी तथा वो MSP खतम करने के पक्ष में नहीं है।
यहाँ पर आपको यह बात भी बतानी ज़रूरी हो जाती है कि एक रिपोर्ट के मुताबिक़ पूरे देश में मात्र 6 % किसान ही अपने उत्पादों को MSP पर बेच पाते है। बाक़ी 94% को MSP के नीचे अवैध व्यापारियों और बिचौलियों को बेचना पड़ता है। हालाँकि पंजाब और हरियाणा में किसान जो MSP पर बेचते है उनका प्रतिशत पूरे देश से ज़्यादा है। एक यह भी कारण है की ज़्यादातर विरोध पंजाब और हरियाणा में केंद्रित है।
APMC ( Agricultural Produce Market Committee) कृषि उत्पाद बाज़ार मंडी
APMC राज्य सरकार द्वारा स्थापित वो मंडिया है जहां पर कृषि उत्पादों को ख़रीदा और बेचा जा सकता है। हर राज्य में APMC अलग अलग उस राज्य के क़ानून के हिसाब से संचालित होती है। किसी किसी राज्य में APMC का एकाधिकार है तो कही कही पर APMC के एकाधिकार को खतम करके और भी जगहों पर ख़रीद फ़रोख़्त की अनुमति दी गई है। जैसे की तमिलनाडु और बिहार में किसान अपने उत्पाद APMC के अलावा और भी जगह बेच सकता है। यह व्यवस्था सारे राज्यों में एक सी नहीं है।
केंद्र सरकार के नए क़ानून में APMC के वर्चस्व को खतम कर दिया गया है। इस क़ानून के मुताबिक़ किसान APMC के अलावा कही भी अपने उत्पाद बेच सकता है जैसे की बड़ी कंपनियो के भंडार ग्रह, warehouse, farmgate, silos, अपने खेत पर ही, या कही भी स्थापित संस्करण संस्थान या गाव में स्थापित किसी केंद्र पर।
पंजाब तथा हरियाणा में विरोध का मुख्य कारण है कि वहाँ पर APMC लगभग सारे गाव से पूरी तरह से लिंक रोड द्वारा जुड़े हुए है। किसान अपने खेत का माल सीधे ट्रैक्टर या ट्रक से मंडियो में ले जा सकता है और बेच सकता है। इन APMC में मौजूद बिचौलिये या आढ़तिए इन उत्पादों को अपने अपने दुकाओ के पास रखवाते है, साफ़ करवाते है, बोरो में पैक करवाते है और बोलियाँ लगवाते है। इन सबके बदले में आढ़तिए 2.5 % का कमिशन लेते है।
किसानो को यह लगता है कि नए क़ानून से APMC मंडिया जो अभी तक उनके लिए एक तरह का सुविधा केंद्र है वो खतम कर दी जाएँगी। और उन्हें दूर दूर तक भटकना पड़ेगा अपने अनाज को बेचने के लिए।
APMC की कुछ ख़ामियों की भी यहाँ पर चर्चा करनी ज़रूरी हो जाती है-
किसान APMC के अलावा अपने उत्पाद कही और नहीं बेच सकता है, चाहे भले ही कोई व्यापारी उसको MSP या APMC से भी अच्छा दाम दे रहा हो। उस व्यापारी को उत्पाद ख़रीदने के लिए APMC आना पड़ेगा और किसान को बेचने के लिए APMC। APMC के बाहर ख़रीदना और बेचना ग़ैर क़ानूनी है। जिससे APMC में मौजूद आढ़तियों और व्यापारियों के हिसाब से उत्पाद का दाम तय होता है। जिस पर आढ़तिया 2.5% और राज्य सरकार 8% के आस पास टैक्स लगाती है। हर ज़िले के हिसाब से APMC का क्षेत्र बटा होता है। अगर एक ज़िले के किसान का APMC उसके गाव से 50 किलोमीटर दूर है तो उसे वही जाना पढ़ेगा, भले ही दूसरे ज़िले की APMC उसके गाव से 2 किलोमीटर ही क्यू ना दूर हो। हालाँकि 2015 में सरकार E-NAM से सरकार ने लॉंच किया था जिससे ऑनलाइन उत्पाद बेचे जा सकते थे देश की किसी भी मंडी में। परंतु यह छोटे किसानो के लिए सफल और सहयोगी साबित नहीं हो सका।
APMC में मौजूद आढ़तिए और ट्रेड टैक्स
ऊपर के पैराग्राफ़ में हम देख चुके है कि APMC और उनमें मौजूद आढ़तिए किस तरह कम करते है। अब हमें यह देखना है कि मौजूदा किसान विरोधों में इनका क्या योगदान या मतलब है। नए क़ानून के हिसाब से APMC का वर्चस्व खतम होगा जिससे आढ़तियों के कमिशन पर फ़र्क़ पड़ेगा।
इस विरोध में आढ़तिए भी प्रदर्शन कर रहे है, और अपने साथ हज़ारों की संख्या में किसानो को एकत्रित करके जगह जगह प्रदर्शन कर रहे है। APMC का एकाधिकार खतम होने से राज्य सरकारें जो 6-8% का टैक्स लगाती है उनसे उनको हाथ धोना पड़ेगा। पंजाब तथा हरियाणा में यह ट्रेड टैक्स राज्य के कोश भरने का बहुत ही अच्छा साधन है। इस कारण से पंजाब की सरकार इन विरोधों का समर्थन कर रही है। कुछ विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि चुकी बहुत सारे छोटे और मँझले किसान बैंकिंग सेवा से सीधे तौर पर नहीं जुड़े है, और मंडी में मौजूद आढ़तिए इन किसानो को समय समय पर लोन इत्यादि उपलब्ध कराते रहते है। जैसे कि बीज और खाद ख़रीदने के लिए इत्यादि। बिहार में APMC एकाधिकार को 2006 से समाप्त कर दिया गया है, लेकिन वह पर कोई ख़ास अंतर नहीं पढ़ा है किसान की कमाई पर। वह पर अब भी बहुत सारे उत्पाद MSP से नीचे बिकते है।हाल ही की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ बिहार में चावल अभी अपनी MSP से 30% नीचे पर बिक रहा है।
हालाँकि ये आढ़तिया की परम्परा ख़ानदानी चली आ रही है। इसका मतलब ये है उस मंडी में वर्तमान आढ़तियों के पिता और दादा भी आढ़तियों के कम सम्भालते थे अगर कोई नया व्यक्ति इन मंडियो में आढ़तिया का काम करना चाहे तो उसका प्रवेश मुश्किल है,जब तक कि उसके ऊपर कोई राजनीतिक हाथ ना हो।
किसान इन आढ़तियों के माध्यम से ही अपना सामान बेच सकते है। जिससे कि सारी सौदे की सकती इन बिचौलियों के हाथ में आ जाती है। उदाहरण के स्वरूप किसी किसान का 100 रुपए का माल 80 रुपए में ख़रीदना और व्यापारी को 140 रुपए में बेचना। जो यह 60 रुपए का फ़ायदा किसान को मिलना चाहिए था वो सीधे सीधे आढ़तियों के पॉकेट में जाता है। क़ानून के हिसाब से 80 का 2.5% यानी की 2 रुपए ही आढ़तिए को मिलना चाहिए परंतु वो सीधे सीधे 60 रुपए कमाते है इस बिचौलियेपन से।
ऐसा नहीं है कि APMC को खतम कर दिया गया है परंतु नए क़ानून के मुताबिक़ APMC को उनके अपने फ़िज़िकल सीमा तक ही सीमित कर दिया गया है। अपने सीमा या बाउंड्री के बाहर वो अनाज ख़रीद या बेच नहीं सकती। बिहार में अब भी बहुत सारी APMC अभी भी अच्छी तरह संचालित हो रही है, जैसे कि पूर्णिया में स्थित गुलाब बाग मंडी, जो की प्रति वर्ष 5-6 टन मक्का का व्यापार सम्भालती है। बिहार में लगभग प्रतिवर्ष 30-40 टन व्यापारियों द्वारा बड़ी बड़ी कंपनियो के लिए ख़रीदा जाता है। बहुत सारी मंडिया जो विशेष प्रकार के उत्पादों को सम्भालती है वो कभी बंद या घाटे में नहीं चल सकती, जैसे कि गुजरात का जीरा मंडी, आंध्र प्रदेश का मिर्ची मंडी, महाराष्ट्र का प्याज़ और टमाटर मंडी।
Contract Farming ( अनुबंध पर उत्पादन )
कॉंट्रैक्ट फ़ार्मिंग वह है जाह पर खाद्य प्रशंस्करन ( food processing) कंपनियो द्वारा किसानो को ठेका दिया जाता है। जैसी की Mcdonald किसी किसान को यह ठेका दे सकती है की मुझे इस प्रकार का आलू चाहिए और प्रति क्विंटल के हिसाब से आपको पहले से निर्धारित रक़म दी जाएगी। इसके लिए बीज, प्रशिक्षण और खाद कम्पनी दे सकती है। इस उत्पाद को किसान बस उसीको बेच सकते है बाज़ार में नहीं। बाज़ार में भले ही उसका मूल्य गिर गया हो या फिर ज़्यादा हो उसे पहले से तय रक़म के हिसाब से ही भुगतान किया जाएगा। जैसे की आज कल BIG BASKET नाम की संस्था जो सब्ज़ियों और ताजे उत्पादों को बेचती है, किसानो को कॉंट्रैक्ट फ़ार्मिंग दे सकती है। इससे बाज़ार में उत्पाद का दाम गिरने से किसान को नुक़सान नहीं होगा क्यूँकि उसे अनुबंध के हिसाब से पहले से तय मूल्य मिलेगा।
इसमें किसानो के विरोध का मुख्य कारण है कि बहुत सारे किसान कम पढ़े लिखे है, और कंपनिया अपने वकीलों के माध्यम से कड़े अनुबंध बनवाएँगी। जिसमें मुख्य फ़ायदा इन कंपनियो का होगा ना कि किसानो को। उदाहरण के लिए कुछ अनुबंध इस प्रकार होते है कि किसान अनुबंध वाले बीज का उपयोग दूसरी जगह नहीं कर सकत तथा कम्पनी या उसके सहयोगियों से हर साल उन्हें नया बीज ख़रीदना होगा। पश्चिमी देशों में कॉंट्रैक्ट फ़ार्मिंग का चलन बहुत पुराना है परंतु वह भी इसकी वजह से किसानो की स्थिति पर कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ा है। कोई भी संस्था अपना फ़ायदा (profit) पहले देखती है और अनुबंध अपने फ़ायदे के हिसाब से बनवाती है।
Bargaining Power of Farmers ( किसान की सौदे करने की क्षमता)
जैसा कि आपको मालूम होगा की भारत में लगभग 95% छोटे और मँझले किसान है। इनके पास छोटे छोटे खेत और कम मात्रा में उत्पाद निकलने की क्षमता है। यह किसान व्यापार के मामले में संगठित भी नहीं है। एक वाजीब संगठन के अभाव में इनकी bargaining power या सौदेबाज़ी की क्षमता बहुत ही कम है। संगठन ना होने तथा सौदे की जानकारी कम होने से बढ़े व्यापारी इन किसानो से कम और मनचाहे मूल्य पर उत्पादों को ख़रीदेंगे जिससे कि फ़ायदा व्यापारियों का होगा ना कि इन किसानो का। छोटे छोटे किसान भी APMC में अपने सामान को आढ़तियों की मदद से ठीक ठाक दाम या MSP पर बेच पाते है। एक कारण यह भी है किसानो के विरोध का कि बड़ी कंपनियो द्वारा उन्हें बेवक़ूफ़ बनाकर कम दाम में उत्पाद ख़रीद लिया जाएगा।
हालाँकि मैं यह पर एक उदाहरण देना चाहूँगा दुग्ध उत्पादन और और उसके क्रय विक्रय का। दुग्ध कभी भी APMC का हिस्सा नहीं रहा है, परंतु फिर भी छोटे छोटे किसान सहकारियों संस्थावो के सहयोग से सही दाम पर बेच पाते है। भविष्य में अगर इसी प्रकार की संस्थाए किसानो के सहयोग के लिए आगे आए तो यह छोटे छोटे किसान भी उचित दाम प्राप्त कर सकते है। किसानो की संगठित संस्था उनके लिए बड़ी कंपनियो से सौदा कर सकती है। दुग्ध व्यापार में इनको agrigator कहा जाता है। जो छोटे छोटे किसानो से उत्पाद उगाहती है और एकत्र करके बेचती है।
Storage of Food Commodities ( खाद्य संग्रहण)
नए कृषि सुधार कानूनो में से एक Essential commodities Act (amendment -2020 भी है। सांसद में इस वर्तमान Essential commodities Act (amendment -2020) में बदलाव किया गया है। अभी तक केवल सरकारी अजेंसिया या फिर सरकार द्वारा नामित संस्थाए ही खाद्य उत्पादों का संग्रहण कर सकती थी।उनके अलावा कोई भी खाद्य उत्पादों का संग्रहण करता हुआ पाया जाता तो उनपे सरकारी करवाई की जाती थी। चाहे वो संग्रहण भले ही किसान अपने घर में ही क्यू ना कर रहा हो। इस Commodites Act का मुख्य उद्देश्य यही था कि कोई भोज्य पदार्थों का संग्रहण इतना ना कर सके कि उनकी कमी हो जाए बाज़ार में । और व्यापारी या किसान उनको अनुचित ढंग से ऊँचे दाम पर बेच सके।
अब नए क़ानून के हिसाब से कोई भी अनाज का संग्रह कर सकता है (आपदा और आपातस्थिति को छोड़कर), चाहे वो किसान हो, व्यापारी हो या फिर कोल्ड स्टोरेज या ware house। पहले आलू,टमाटर या प्याज़ के दाम कम होने पर किसान या व्यापारी कोल्ड स्टोरेज में संग्रह नहीं कर सकते थे। यही कारण है कि बहुत सारे किसानो को अपने उत्पाद जैसे आलू,टमाटर और प्याज़ इत्यादि सड़क के किनारे फेंकना पड़ता था, क्यूँकि बाज़ार में इतना काम दाम मिलता था कि लागत तो छोड़िए उस समान को खेत से मंडी तक पहुचने की लागत तक नहीं मिल पाती थी। परंतु इस नए क़ानून के पश्चात अगर बाज़ार में मूल्य कम हो तो उसका संग्रह किसान द्वारा किया जा सकता है तथा उसको दाम उठने पर उसे फिर से बाज़ार में बेच जा सकता है।
इस क़ानून के पास होने से एक ख़तरा है कि बड़े व्यापारी और कला बाज़ारी ज़रूरी सामानों को बहुत देर तक इकट्ठा और छुपा के रखेंगे, अनुचित और कृत्रिम तरीक़े से इन उत्पादों का मूल्य बढ़ाया जाएगा। और बहुत ही ज़्यादा क़ीमत पर इनको बेच जाएगा। इस बिल से उनकी किसानो को फ़ायदा पहुँचेगा जिनके पास Storage और कोल्ड storage की क्षमता है।
निष्कर्ष
ये तीनो क़ानून भारत के किसान और उसकी अर्थवयस्था में उसी प्रकार के परिवर्तन ला सकते है जैसे की 1991 के आर्थिक सुधार। अगर आप 1991 के आर्थिक सुधारो के बारे में और जानना चाहते है तो इस लिंक पर क्लिक करे।
हालाँकि इस दिशा में सरकार और उसके कर्मचारियों द्वारा बहुत ईमानदारी से कदम उठाने पड़ेंगे। कोई भी क़ानून दो धारी तलवार की तरह होता है, जिसका अच्छा और ग़लत दोनो तरींके से इस्तेमाल किया जा सकता है। सरकार को चाहिए के इस क़ानून का अच्छे से पालन करने वालों को प्रोत्साहित करे और दुरुपयोग करने वालों को दंडित करे।
इन विरोधों का मुख्यतः पंजाब और हरियाणा में विरोध इस लिए हो रहा है कि वह पर APMC सारे गाव से पूरी तरह जुड़ी हुई है। पंजाब और हरियाणा के किसानो का उपजाया हुआ लगभग सारा अनाज सरकार MSP पर इन APMCs से ख़रीद लेती है। इन मंडियो से जुड़े हुए आढ़तिए किसानो को समय समय पर लोन भी देते रहते है, और ये किसानो को प्रदर्शन हेतु प्रोत्साहित कर रहे है।
हालाँकि सरकार को ये भी चाहिए था कि MSP का उल्लेख इन बिलों में किया जाए। केवल सरकार द्वारा लिखित और मौखिक वचन किसानो के इस डर को और प्रबल बनाते है कि भविष्य में सरकार MSP को हटा भी सकती है। किसानो को क्षेत्रीय और गाव स्तर पर मज़बूत संगठन बनाने हेतु प्रयाश किया जाना चाहिए, जिससे उनकी bargainig पावर या सौदेबाज़ी की क्षमता बढ़े और बढ़े व्यापारियों से ये संगठन सौदा करे। इस क्षेत्र में किसानो को NGOs द्वारा भी सहयोग प्रदान किया जाना चाहिए।
अगर आप इस लेख के तथ्य को प्रमाणित करना चाहते है तथा इसके बारे में और विस्तार से जानना चाहते है तो यहाँ पर क्लिक करे।
Sahi baat
Pingback: किसान आंदोलन 2020-21 why in Punjab & Hariyana only - AAJKAYOUTH