एक सफल व्यक्तित्व के लिये नई आदतों का निर्माण बहुत ज़रूरी है। ये छोटी छोटी आदते ही एक साथ मिलकर भविष्य में एक सफल व्यक्तिव का निर्माण करती है। यह सच ही कहा गया है कि आदते ही एक सफल इंसान को बनाती है। इसमें नई आदते बनाना और उसमे लगे रहने के लिए उसमे निरंतरता को अपनाना बहुत ही ज़रूरी है। और यही पर काम आती है आदत और निरंतरता की शक्ति।
रस्सी और पत्थर की कहानी
करत करत अभ्यास ते जड़मती होत सुजान । रसरी आवत जात ते सिल पर पड़त निसान। अगर आस पास कभी कुआँ मिले तो देखना, उसके मुहाने पर लगे पत्थर को। बार बार रस्सी से बाल्टी को ऊपर खिंचने के कारण उस पत्थर में गड्ढ़े पड़ जाते है। मतलब कि जिस तरह से लगातार एक कोमल रस्सी के बार बार आने जाने और घिसने से कुएँ पर लगे पत्थर में निशान पड़ जाता है, ठीक उसी तरह लगातार अभ्यास करते रहने से एक बुद्धिहीन भी ज्ञानी बन जाता है। यहाँ पर ध्यान देने वाला शब्द है लगातार रस्सी का आना और जाना तथा उससे होने वाला लगातार घिसाव। लगातार मतलब निरन्तर या अंग्रेज़ी में कहे तो conitinuity। अगर हम प्रत्यक्ष रूप से देखे तो एक जूट की बनी हुई रस्सी और पत्थर में तुलना ही क्या हो सकती है। एक कोमल और कमजोर तो दूसरा अत्यंत कठोर। फिर भी लगातार/निरंतरता के चलते एक कोमल सी रस्सी भी कठोर पत्थर को काट देती है।
निरंतर होने का अभ्यास
ठीक इसी प्रकार अगर हम किसी विषय पर लगातार प्रतिदिन काम करते रहे तो हम उसमे कुछ दिनों या महीनों में पारंगत हो जाएँगे। यहाँ ज़रूरत है निरंतरता की। जैसे कि अगर हमे योग और ध्यान , व्यायाम या जिम का अभ्यास करना है, तो थोड़ा थोड़ा थोड़ा परंतु लगातार रोज़ किया जाना चाहिए । थोड़ा थोड़ा करे परंतु रोज़ करे। इसे अन्य उदाहरण से समझा जा सकता है।अगर हम कोई संगीत वाद्य बजाना सीखना चाहते है, तो रोज़ का २० मिनट का अभ्यास करे। यह हफ़्त में एक दिन के ३ घंटे के अभ्यास से बढ़िया है। इस समय को अपने क्षमता से कम और उसके अंदर ही रखना चाहिए । यानि कि अपने comfort के अंदर रखिए। मान लीजिए कि अगर आप किसी काम को ३० मिनट कर सकते है। परंतु उसका आदत लगाना है, तो मात्र १० मिनट कीजिए और रोज कीजिए। इस १० मिनट के समय को एक मिनट भी आगे मत बढ़ाइये। अगर आप को पढ़ने की आदत डालनी है, तो रोज़ सिर्फ़ १० मिनट पढ़िए परंतु प्रतिदिन पढ़िए। भले ही आपकी क्षमता ३० मिनट या आधे घंटे की हो, आपको सावधानी पूर्वक मात्र १० मिनट ही पढ़ना है। इस आदत को स्थायी बनाना है । इस समय को आप २ महीने बाद बढ़ा कर २०- २५ मिनट कर सकते है। पर उससे पहले नहीं। क्योकि कई सारी पुस्तकों और अध्यन के मुताबिक़ यही बात निकल के आई है कि, किसी आदत को स्थायी होने में २१*३= ६३ दिन लगते है। एक उदाहरण से इसे और अच्छे से समझा जा सकता है। मानो कोई नदी अपने मेड़ के अंदर अंदर बह रही है। अब इस नदी को इसी मेढ़ के अंदर अंदर महीनों तक बहना चाहिए, जब तक कि इसके मेढ़ मज़बूत ना हो जाये। मान लीजिए अगर नदी इस मेढ़ को मज़बूत होने से पहले ही पार कर जाये तो, ये मेढ़ टूट जाएगा। नदी का रास्ता भी बदल जाएगा। इस पूर्व निर्धारित रास्ते को छोड़कर नदी और पानी उस रास्ते पर बह निकलेगा, जिसकी किसी ने आसा भी ना की होगी। अब इस पूरे वाक्य में नदी को आदत से रिप्लेस कर दीजिए।
मन की चाल
आपका मन बार बार करेगा कि इस समय को बढ़ाया जाये, परंतु यही पर हमे संभल जाना है। ये भी मन की चाल ही है। शुरू शुरू में यह मन समय को धीरे धीरे ज़्यादा बढ़ाएगा, फिर एक दिन उस काम को बोझ बनवा के छुड़वा देगा। अगर मन को नियंत्रण में रखा जाये और सिर्फ़ पूर्व निर्धारित समय के बराबर ही रोज़ रोज़ अभ्यास किया जाये, तो कुछ दिन में ये आदत हमारे अंदर आके स्वाभाविक रूप से चिपक जाएगी। उसी स्वाभाविकता से जैसे हम स्वाभाविक रूप से जागते है, नहाते और खाते है, ठीक उसी तरह।
मन की चाल
आदते सफल/असफल आदमी का निर्माण करती है
एक वाक्य है, जो काफ़ी हद तक सच है- “ हमारी आदते ही हमारा व्यक्तित्व या पर्सनालिटी है।’’ लगातार होने पर एक लंबे समय बाद ये आदते ही हमे अच्छे या बुरा व्यक्तिव देती है। उदाहरण के स्वरूप अगर आप एक स्वस्थ और फिट इंसान दिखना पसन्द करते है तो आपको रोज़ व्यायाम की आदत डालनी होगी। अगर आप ज्ञानी और जानकार आदमी के रूप में जाने जाना चाहते है, तो आपको रोज़ कुछ मिनट कम से कम पढ़ने की आदत डालनी पड़ेगी। इसी तरह लेखक बनना चाहते है, तो आपको रोज़ कुछ कुछ ना लिखन पड़ेगा। इसे एक उदाहरण से समझते है। हमारा व्यक्तित्व एक पात्र या बर्तन की तरह है। ये आदते उस लोहार के हथौड़े की तरह होती है जिसके द्वारा एक लोहे को टुकड़े को हथौड़े के द्वारा पीट पीट कर एक आकार दिया जाता है। वैसे ही हथौड़ा रूपी आदते धीरे धीरे एक लंबे समय में हमारे व्यक्तिव का निर्माण करती है। आदत और निरंतरता।
क़िस्मत या आदतों का परिणाम
एक बार के लिए कल्पना करे कि आप एक ख़ाली बर्तन या एक पात्र है। और हमारी क़िस्मत हमारे जीवन में ऊपर से टपकने वाली वाली बारिश है। अगर आपका पात्र ५ लीटर का है, तो उसमे ५ लीटर, अगर आधा लीटर का है, तो उसमे मात्रा आधा लीटर ही पानी आएगा। हमारे बर्तन में उतना ही पानी आएगा जितना बड़ा बर्तन है। ठीक उसी तरह हमारे पक्ष में क़िस्मत भी उतनी ही काम देगी, जितना हमारा व्यक्तित्व बड़ा या छोटा होगा। अतः क़िस्मत का पूरा पूरा फ़ायदा उठाने के लिये आपको अपने पात्र की क्षमता बढ़ा के रखनी होगी। हा, ये दूसरी बात है, कि किसी किसी के जीवन में वो भाग्य की बारिश कभी कम आती है, तो कभी नहीं आती। परंतु अगर उसकी क्षमता पहले से बढ़ी है, तो कम क़िस्मत की बारिश में भी लाभ ज़्यादा लिया जा सकता है।
इन्ही शब्दों को आध्यात्मिक रूप से समझते है। हमारे जीवन में जो भी आता है वो मात्रा दो चीजों के परिणाम है। पहला प्रारब्ध और दूसरा पुरुषत्व । प्रारब्ध में जो है उसे तो भोगना ही है, चाहे वो सुख हो या दुख। परंतु इसे भोगना कौन सी स्थिति में है।इसका निर्णय है, पुरुषत्व के हाथ में। चाहे तो हम दुख को हल्के में झेल जाये। या फिर इस दुख को घिसट घिसट के झेले।ये निर्भर कर हमारे पुरुषत्व पर। और इस पुरुषत्व का निर्माण होता है आदतों से। इन आदतों को बनाना हमारे हाथ में है।
नई आदतों के निर्माण के लिए कुछ उपाय- आदत और निरंतरता के उपाय
१- आदतों की सूची बनाइए– सुबह उठने से लेकर रात के सोने तक जो जो हमारी आदते है, उनकी एक सूची बनाई जाए। जैसे सुबह उठके पानी पीना, फिर सिगरेट पीकर बाथरूम जाना, फिर बाहर आकर आधे घंटे के लिए मोबाइल चलाना, टहलने जाना इत्यादि। अगर हम अपनी आदतों की सूची बना ले एक पन्ने पर तो हम सबसे पहले सचेत होंगे अपनीं आदतों के बारे में। सुबह से लेकर शाम तक हम बहुत सारी चीजें जाने और अनजाने में करते रहते है। हमे पता तक नहीं चलता है। इस सूची का मतलब है कि हमे सर्वप्रथम अपनी आदतों के प्रति सचेत होना है।
२- नई आदत उसकी जगह और स्थान का निर्धारण – अपने वर्तनाम और भविष्य को देखते हुए हमे नई अच्छी आदतों को अपनाना है पुरानी बुरी आदतों को छोड़ना है। और इसमें ऊपर बनाई गई आदतों की सूची हमारी मदद करेगी। नई आदत और उसका स्थान निर्धारण से मतलब है -जैसे कि मान लो हमे नई किताबों को पढ़ने की आदत डालनी है। तो हम एक पेपर पर नोट करके लिख लेंगे, २० मिनट किताब पढ़ना सुबह ८ बजे अपने हॉल में रखे सोफ़े पर बैठ कर। रोज़ाना एक्सरसाइज ३० मिनट के लिए सुबह ७ बजे अपने घर की छत पर।इस तरह समय और स्थान को अपनी आदत से जोड़ने पर, उस आदत की अगली सुबह होने की और उसकी पुनरावृत्ति होने की संभावना ज़्यादा रहती है। जिस काम की पुनरावृत्ति ना हो फिर वो आदत के रूप में हमसे जुड़ ही नहीं सकती।
३- अपने आसपास माहौल बना के रखना – नई आदते एक नये उगते हुए नन्हे पौधे की तरह होती है, जैसे एक नए पौधे को उगाने के लिए बहुत ही ज्यादा ध्यान रखना पड़ता है। कि कही ज्यादा गर्मी, धूप या पानी न लगे। उसे ढक कर, उसके चारो ओर मेढ़ लगाकर बाहरी हमलों, धूप, गर्मी, जाड़ा से बचाया जाता है। ठीक उसी प्रकार नई आदत का विकास करने के लिए हमारे आसपास उसके अनुकूल माहौल विकसित करना होता है। हमे अपनी कुछ ऐक्टिविटीज़ छोड़नी पड़ेंगी जो इन आदतों के प्रतिकूल हो। जैसे अगर आप नियमित व्यायाम या पढ़ाई की आदत डालना चाहते हो, तो घर में ही एक ऐसे जगह का चयन करो जहां आपको कुछ देर के लिए डिस्टर्ब करने वाला कोई ना हो। ख़ान पैन पर ध्यान रखे। अपनी वो आदतों से दूरी बनाये जो आपकी शारीरिक ताक़त कम करती हो। क्योकि इस ताक़त का इस्तेमाल हमे एक्सरसाइज में लगेगा। पढ़ाई के लिए हल्का संगीत वाला माहौल को अपनाया जा सकता है। किताब पढ़ने का अभ्यास करते समय मोबाइल को बंद करके कही कोने में रख दें। कोई दूसरा आपको देखने वाला ना जो आपको या आपकी आदतों को देखकर उसपर टिप्पणी दे। जो चीजें उस आदत को विकसित करने में बाधा बनती दिखी उसे हटा दिया जाना चाहिए। अगर हम संगीत सीखना चाहते हो, तो ऐसी जगह पर बैठ कर अभ्यास ना करे, जहां शोर होता हो, वहाँ बैठना आरामदायक ना हो।
४- नई आदत को पुरानी आदत के तुरंत बाद करना – हमारे जीवन में बहुत सारी आदते अपने आप से स्वाभाविक रूप से होती है, उदाहरण के लिए रोज़ नहाना, खाना खाना, और सोना इत्यादि। ये सब तो पुरानी आदते है। अब इनके साथ हमे नई आदतों को चिपका देना है। इसे उदाहरण से समझिए – मान लीजिए कि आप ध्यान या मैडिटेशन का आदत बनाना चाहते है, तो इसके लिए अच्छा है, कि इसे आप तुरंत नहाने के बाद ही करे। इसमें आपकी पुरानी आदत नहाना और नई आदत है, ध्यान का अभ्यास। अगर आप रोज़ रात को टूथ ब्रश करने की आदत बनाना चाहते हो, तो सबसे बेहतर है, इसे रात के खाने के तुरंत बाद किया जाएँ। किताब पढ़ने की आदत डालनी हो तो बेहतर है, बिस्तर पर लेटते ही सोने से पहले कुछ पन्ने पढ़ लिये जाये। इसको कह सकते है, एक पुरानी स्वाभाविक आदत के साथ नई आदत को चिपकाना।
५- कम करो पर लगातार करो- अगर हम कुछ नई एक्टिविटी या आदत अपने आप में जोड़ना चाहते है, तो बेहतर है, हम उसे रोज़ लगातार करे तथा अपनी क्षमता के अंदर ही रखे। जैसे की अगर आपकी क्षमता ३० मिनट व्यायाम करने का है तो व्यायाम की नई आदत बनाते समय उसे मात्र २० मिनट ही रखे। जब हम कोई भी नया काम करके उसकी आदत डालने का प्रारस करे तो ये प्रारंभ में कठिन लगते है। तो यहां ज़रूरी है, कि हम इस कम को अपनी कम्फर्ट के सीमा के अंदर ही रहखे। ये कार्य हमे शुरू शुरू में अगर ज़्यादा कठिन प्रतीत होगा तो हम इस नये ऐक्टिविटी या आदत को मात्र २-४ दिन में छोड़ देंगे। अगर ये हमारे कम्फर्ट के अंदर रहा तो, हो सकता है हमारा मन इससे ना ऊबे, और धीरे धीरे मन इसमें रमने लगे। इससे आदत और निरंतरता बनी रहने की संभावना ज़्यादा बढ़ जाती
६- २ मिनट हैबिट्स– यह २ मिनट्स हैबिट बहुत सी क़िताबो में पाया गया है। इसका कहना है कि अगर कोई आदत जो बहुत मुश्किल है लगाना तो बेहतर है कि उसे रोज़ सिर्फ़ २ मिनट के लिए किया जाय । हा याद रहे इस काम को २ मिनट से ज़्यादा नहीं करना है। प्रतिदिन सिर्फ़ दो मिनट, ना उससे ज़्यादा ना ही उससे कम। कुछ दिनों में हमारा मन हमे ख़ुद परेशान करेगा। और कहने लगेगा इसे २ मिनट से बढ़ाओ, १० मिनट करो १५ मिनट करो। पर यही पर हमे सावधान रहने की ज़रूरत है। २ मिनट से ज़्यादा नहीं। इसे लगातार २ महीने तक यूही चलने दे। इससे उस काम को करने की ललक और चाह सुलगती रहेगी। कुछ दिनों में ये आदत आपमें अच्छी तरह चिपक जाएगी।
निष्कर्ष–
नई आदत और निरंतरता बनाये रखना है तो उसे आरामदायक रखे, रोज़ और निरंतर करे। शुरू शुरू में इसके समय को कम रखे। और हो सके तो उसे किसी पुरानी आदत से लगा के रखिए। कुछ समय बाद ये आदते आपमें स्वाभाविक रूप से अपने आप होने लगेंगी।
पैमाना-पाओगे उतना ही जितनी पात्रता है – AAJKAYOUTH
Habits Guide: How to Build Good Habits and Break Bad Ones (jamesclear.com)