समय मैं याद करता हूँ जिगर के उस तरावट को जो तुझको पीके मिलती थी कि जिससे प्यास बुझती थी जब तुम थे मेरे दरम्यां मेरी नस नस में बहते थे तुम मुझमें पिघलते थे कि जैसे बर्फ पानी में मुझी में घुलके रहते थे समय मैं याद करता हूँ मेरी ही उम्र के तुम थे तुम्हारा नाम बचपन था लड़कपन था अक्खड़पन था तुम्हारी नर्म हाथों में मेरा एक दोस्त रहता था तुम्हारी गर्म साँसों से मचल कर बात करता था दिन भर दौड़ता था खेलता था साथ पढ़ता था कोई किस्सा सुनाऊँ तो किलक कर खूब हँसता था स्लेटों पर मेरे ही साथ में चिड़िया बनाता था कभी कॉपी की चाहत में दो रुपये चुराता था मेरे ही सुर मिलाकर यूं ही कोई गीत गाता था समय मैं याद करता हूँ भले तुम भूल जाओ अब बड़े होकर शहर जाकर तमाशे कर मगर मैं याद करता हूँ उसी जगह खड़े होकर तुम्हारा नाम ले लेकर बिछड़ के यूँ गए जो तुम अब हर चीज ही बिखड़ी हुई महसूस होती है हर एक शय से हर एक रंग भी उतरी सी लगती है कोई लम्हा भले जी लूँ भले कितना भी कुछ पी लूँ कि अब तो प्यास भी बुझती नहीं तुमसे जुदा होकर समय मैं याद करता हूँ तुम्हारा दोस्त मैं 'सागर' -By Sagar
Excellent mind blowing🤯