The war that made R&AW. आपने रॉ (R&AW) के बारे में सुना ही होगा। हाँ वही जो भारत की ख़ुफ़िया एजेन्सी है। यह एजेन्सी भारत के बाहर के मामलों को देखती है, उनके बारे में सूचना और इंटेलिजेन्स इकट्ठा करती है। वो मामले जो भारत को भविष्य में या वर्तमान में नुक़सान पहुँचा सकते है। यह वैसे ही काम करती है जैसे की CIA, Mossad, और MI6। लेकिन आपको बहुत कम जानकारी होगी की R&AW की स्थापना कब हुई, किन परिस्थितियों में हुई।इसके स्थापना के पीछे कौन कौन लोग ज़िम्मेदार थे। और किस तरह से R&AW ने विश्व की महत्वपूर्ण ख़ुफ़िया agencies में अपनी एक महत्वपूर्ण जगह बनाई।
इन्ही सब सवालों का जवाब देने के लिए मार्केट में एक नई किताब लॉंच हुई है, The war that made R&AW। इस किताब के लेखक है अनुशा नंदकुमार और संदीप साकेत। इन दोनो ने बहुत सारे रीसर्च, किताबें और इंटर्व्यू की मदद से R&AW का इतिहास लिखने की कोशिश की है। यहा पर याद रखना ज़रूरी है की इस एजेन्सी के बारे में आपको कही भी लिखित में कुछ नही मिलेगा। नाही इसकी नितिया, ना इसके निर्णय और नाही कोई फ़ाइल।
यह किताब The war that made R&AW अगर एक नज़र से देखे तो यह हिंदुस्तान पाकिस्तान 1971 युद्ध को R&AW की नज़र से देखने की कोशिश है। 1971 युद्ध को R&AW के narrative से प्रस्तुत करने की कोशिश है। इस किताब में दिए हुए घटनाओं पर चर्चा करने से पहले इस किताब के मुताबिक़ रॉ के इतिहास के ऊपर चर्चा करते है।
रॉ की स्थापना 1968 में इंदिरा गांधी की सरकार में हुआ था। इसको बनाने में सबसे अहम और अतुलनीय योगदान था रॉ के प्रथम मुखिया रामनाथ काव और उनके सहयोगी शंकरन नारायण का। रामनाथ काव इससे पहले ही जासूसी की दुनिया में अपना नाम बना चुके थे। उनका पहला अंतःराष्ट्रीय केस था कश्मीर प्रिन्सेस केस। यह केस 1955 में घटित हुआ था। भारत का एक विमान था कश्मीर प्रिन्सेस के नाम से। जो अपनी हवाई यात्रा के समय में हवा में ब्लास्ट से फट गया। हवा में ब्लास्ट से फटने से ज़्यादा महत्वपूर्ण था उसमें जाने वाला व्यक्ति। जो किसी कारण से आज की हवाई यात्रा अचानक से आख़िरी मौक़े पर नही कर सका। और इसी कारण उस दिन के हवाई ब्लास्ट में बच गया था। ये आदमी कोई और नही बल्कि चीन के तत्काल प्रीमीयर झो इनलाई थे।
चूँकि इस हवाई यात्रा में भारत का विमान और भारतीय क्रू शामिल थे। चीन भारत का तत्कालीन समय में मित्र राष्ट्र भी था। अतः भारत को इस मामले के तह तक पहुँचना ही था। चीन के प्रीमियर ने US, England, वियतनाम, और HongKong पर हमले का आरोप लगाया।
इस मामले के जाँच के लिए राम नाथ काव को चुना गया। इस मामले में इनको कई देशों की यात्रा करनी पड़ी। बहुत सारी ख़ुफ़िया एजेंसियो में सम्पर्क बढ़ा। यही सारे अनुभव आगे चल कर रॉ की स्थापना में बहुत मदद की। आख़िर में लगभग एक साल की जाँच के बाद RN Kao ने ढूँढ निकाला कि इस हमले के पीछे तत्कालीन वियतनाम सरकार का हाथ था।जिसने airport पर मौजूद स्थानीय स्टाफ़ की मदद से विमान के अंदर बम फ़िट करवाया था।
इसके बाद RN Kao को घाना भेजा गया। घाना हाल ही में अंग्रेजो के ग़ुलामी से मुक्त हुआ था। तत्कालीन घाना सरकार के अनुरोध पर नेहरू सरकार ने RN Kao को घाना में वहा की इंटेलिजेन्स एजेन्सी की स्थापना के लिए भेजा।
अब आते है की रॉ की स्थापना किन परिस्थितियों में हुई। भारत की तत्कालीन इंटेलिजेन्स एजेन्सी यानी IB, 1962 के युद्ध और 1965 युद्ध में बुरी तरह फेल रहा। IB की स्थापना लगभग 1885 के आसपास हुआ था। कारीगर सूचना और इंटेलिजेन्स के अभाव में सेनाओं और सरकार को 1962 में असफलता और 1965 में उम्मीद के मुताबिक़ सफलता नही मिली।इन सबमें IB की भूमिका की जाँच के लिए एक कमिटी बनाई गई। इस कमिटी में RN Kao भी सदस्य थे।
इस कमिटी की जाँच के मुताबिक़, IB भारत के बाहर से उभरे ख़तरों के बारे में आगाह करने के लिए सक्षम नही है।बहुत समय ऐसे निर्णय लेने पड़ते है जो कि उस समय के लिए महत्वपूर्ण था। इस तरह के निर्णय लेने की क्षमता में IB की beaurocracy सक्षम नही थी। कई सारे मिशन को छुपा कर रखने के लिए एजेन्सी को बहुत हद तक autonomous होना चाहिए था। राजनीतिक दख़ल का दबाव और नौकरशाही की अकर्मण्यता IB में ज़्यादा था। भारत को ज़रूरत थी एक specialised agecny की जो CIA, Mossad, MI 6 और ISI की तरह काम कर सके।
कुछ समय बाद काव ने एक सीक्रेट पेपर लिखा और इंदिरा गांधी को दिया।जिसमें एक एजेन्सी के निर्माण, उसके कार्य कलाप और ज़रूरतों को लेकर लिखा गया था। इसी पेपर के आधार पर इंदिरा गांधी ने काव को निमंत्रित किया। उस मीटिंग में काव ने कुछ महत्वपूर्ण माँगे माँगी। रॉ पूरी तरह से राजनीति से मुक्त रहेगा। कोई भी मिशन, deployment, और नियुक्ति पूरी तरह से रॉ अधिकारी के हाथ में होगी। रॉ सीधे सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करेगा। रॉ के अंदर कोई भी फ़ाइल काग़ज़ पर नही होगी।यानी जो भी होगा सब मौखिक होगा। कोई भी लिखित रिकार्ड नही रहेगा।
इसके बाद रॉ की स्थापना होती है 1968 में। इसकी स्थापना होते ही इसका पहला मिशन था बांग्लादेश स्वतंत्रता युद्ध। जैसा कि ऊपर ही आप देख चुके है। कि इस किताब The war that made R&AW में बांग्लादेश युद्ध को देखने की कोशिश की गई है रॉ की नज़र से। इस किताब में बहुत सारे मिशन की चर्चा है, जिसको रॉ ने संचालित किया। और बांग्लादेश युद्ध में भारतीय सेनाओं के हाथ को मज़बूती प्रदान करी।
धीरे धीरे रॉ ने अपने एजेंट पाकिस्तान और अन्य देशों में प्लांट करना स्टार्ट कर दिया। 25 मार्च 1971 को इसने अवामी लीग बांग्लादेश के नेता मुजिबर्रहमान को चेतावनी दी की पाकिस्तानी सेना पूरे ढाका में छापा मारने जा रही है। अवामी लीग के नेताओ को चुन चुन कर मारने का प्लान है। और आपके पास समय है आप अभी ढाका से बाहर निकल जाओ। परंतु मुजिब ने उनकी चेतावनियो को अनसुना करके।खुद को पाकिस्तानी सेना के हाथों गिरफ़्तार या मारना मंज़ूर किया।
इससे पहले भी रॉ ने बांग्लादेश के आज़ाद प्रिय नेताओ और अधिकारीयो से मिल कर एक प्लान बनाया था। लेकिन ये ज़्यादा सफल नही हो पाया था। इसी को मिज़ोरम प्लान के नाम से जाना जाता है। BSF और SFF (special Frontier फ़ोर्स) सीधे सीधे R&AW के अंदर कम करती थी। ये SFF वही है जो अभी 2020 के चीन और भारत के लद्दाख विवाद में चर्चा में आइ थी। इस SFF में मुख्य रूप से तिब्बती लोग होते है।1971 के युद्ध में SFF ने भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
रॉ ने याह्या खान के मंत्रालय में भी अपना एक एजेंट बड़े पोस्ट पर घुसा रखा था। जो समय समय पर तीसरे देश में इनसे मिलता था और सीक्रेट पास करता था। 1971 के समय में पश्चिमी पाकिस्तान से पूर्वी पाकिस्तान के बीच हवाई आवा गमन बहुत बढ़ गया था। रॉ को शक था कि इसके माध्यम से पाकिस्तानी सेना अपने हथियार और सेना तेज़ी से ट्रान्स्फ़र कर रही थी। इसको रोकने के लिए ये ज़रूरी था की भारत अपने ऊपर के हवाई क्षेत्र से पाकिस्तानी हवाई जहाज़ों का आगमन बंद किया जाए।परंतु मजबूरी थी की अंतराष्ट्रिय समझौते के तहत इसको रोक नही सकते थे।
तभी अचानक से कश्मीर में श्रीनगर से जम्मू जाने के लिए उड़ा एक जहाज़ हाइजैक हो जाता है ।और जाकर लैंड करता है लाहौर में। कुछ बातचीत के बाद आतंकवादी भारतीय नागरिकों को छोड़ देते है, और प्लेन में आग लगा देते है। अगले दिन पाकिस्तानी ज़मीन पर इस भारतीय जहाज़ की धू धू करके जलती हुई तस्वीरें दुनिया दे सारे प्रमुख अखबारो में छपती है। और भारत अपनी सवाई सुरक्षा को ख़तरा बताते हुए अपना हवाई क्षेत्र पाकिस्तान के लिए बंद कर देता है। वास्तव में ये सारा हाइजैकिंग का मामला रॉ के देख रेख और निर्देशन में हुआ था। भारत को एक बहाने की तलाश थी अपनी हवाई क्षेत्र बंद करने के लिए। जो इससे मिल गया।
1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध शुरू होने से पहले पूर्वी पाकिस्तान के चटगाँव समुद्र पत्तन पर मुक्ति बाहिनी का हमला हुआ था। इस हमले में पाकिस्तान के सैन्य जहाज़ और महत्वपूर्ण सामान से लदे व्यापारिक जहाज़ पानी में डूब गए। यह हमला भी रॉ ने पाकिस्तानी नेवी को छोड़ भागे बांग्लादेशियो को प्रशिक्षण दे कर करवाया था।
युद्ध के समय पाकिस्तानी सेना की गतिविधियाँ और मिशन की जासूसी रा करवाता था। और महत्वपूर्ण इंटेल भारतीय सेनाओं को पास करता था। मुक्ति बाहिनी का गठन, प्रशिक्षण से लेकर गुर्रिल्ला हमलों की प्लानिंग रॉ के हाथ में ही था। युद्ध के दौरान ईस्ट पाकिस्तान और वेस्ट पाकिस्तान के रेडीओ और टेलेफ़ोन वार्तालाप को टैप किया जा रहा था। इसी बीच रॉ ने अपने दो ख़ुफ़िया जासूसों की मदद से करांची समुंद्र पत्तन का सर्विलांस करवाया। उनके ऐम्युनिशन डम्प, fuel डम्प, anti aircraft guns की जगह, वहा पर मौजूद पाकिस्तान नेवी के जहाज, और हथियार से लदे व्यापारिक जहाज़ों का फोटो और location लिया गया।
इस पूरे information को भारतीय नेवी को रॉ द्वारा दिया गया। एक दिन बाद भारतीय नेवी अपने missile बोट्स की मदद से करांची seaport पर हमला करता है। हमले में पाकिस्तान के फ़्यूअल डम्प और ऐम्युनिशन डम्प को तबाह कर दिया गया। बहुत सी पाकिस्तानी सैन्य जहाज़ों को तबाह करके हथियारों और बम से लदे containers को समुद्र की तलहटी में डुबो दिया गया।
ऐसे बहुत सारे मिशन की इस किताब The war that made R&AW में चर्चा है जो रॉ द्वारा किए गए। और भारत की जीत में अपनी भूमिका को बखूबी निभाया। 1971 युद्ध के बाद तक दुनिया भर में किसी को भी में रॉ नामक एजेन्सी के बारे में कोई खबर नही थी। पर धीरे धीरे यह पता चल गया कि भारत में भी एक ख़ुफ़िया एजेन्सी है जो CIA, MOSSAD और MI6 के टक्कर की है।
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