विस्मृत यात्री उपन्यास की कहानी एक बौद्ध भिक्षु की है। और यह उपन्यास एक व्यक्ति के सत्य जीवन और घटना पर आधारित है। जो 17 साल की उमर से लगातार 40 साल और 80 हज़ार किमी की यात्रा करता है। इस यात्री ने अपने जीवन काल में लगभग 50 देशों की यात्रायें की। यात्रा प्राचीन भारत के स्वात वैली (आज का पाकिस्तान) से शुरू होती है। चलते चलते पूरे भारत फिर श्री लंका, पूर्व मध्य एसिया और पूर्वी यूरोप तक जाती है। यात्रा का अंत जाकर चीन में होता है।
समय और स्थान विस्मृत यात्री उपन्यास की कहानी का
समय है 500 AD से 580 AD के बीच का। स्थान है, आज का भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, पूर्व मध्य एसिया, पूर्वी यूरोप, साईबेरिया के प्रदेश, तिब्बत और चीन।
पात्र:
मुख्य पात्र है नरेंद्र यश और उनके मित्र बुद्धिल। बुद्धिल यात्रा की शुरुआत से ही उनके साथ रहते है। परंतु कुछ साल बाद यात्रा करते समय डाकुओं ने बुद्धिल की हत्या कर दी। इसके बाद यात्रा में बहुत से भिच्छु और लोग नरेंद्र यश के मित्र बने। पर हमेशा कुछ साल बाद किसी ना किसी वजह से उनका साथ छूट ही जाता था। कोई यात्रा में मारा जाता था, तो कोई गृहस्थ धर्म अपना लेता था। हमेशा की तरह नरेंद्र यश अकेले ही रह जाते थे।
लेखक के अनुसार नरेंद्र यश कोई काल्पनिक पात्र नहीं है। बल्कि वास्तव में नरेंद्र यश थे। जिनका जन्म 500 AD के आसपास स्वात वैली (पाकिस्तान) में हुआ था। 17 साल की उम्र में इन्होंने भिच्छु धर्म को अपनाया और निकल पड़े इस महा यात्रा पर। 589 में चीन में इनकी मृत्यु हो गयी थी।
कहानी
इस विस्मृत यात्री उपन्यास की कहानी नरेंद्र यश और उनकी यात्रा के इर्द गिर्द घूमती रहती है। लेखक ने इस उपन्यास को कई भाग या चैप्टर में बाटा है। इन्ही चेप्टर्स की मदद से हम भी कहानी में आगे बढ़ेंगे।
पहला चैप्टर है नरेंद्रयश की बाल्य अवस्था के बारे में।उनकी जनस्थली उद्यान (स्वात) के बारे में। इस समय बौध धर्म सबसे प्रचलित धर्म है। हर दो चार गाँव पर एक बौध संघ होता था। और हर परिवार से कोई ना कोई उस संघ में भिक्षु होता था। गाव के चारों ओर पहाड़। लोग गर्मियों में अपने पशुओं को लेकर ऊपर पहाड़ पर चले जाते थे। और जब सर्दियों में बर्फ़ पड़ने लगती तो वो नीचे आ जाते। साल भर मौसम ठंडा रहता था। चारों ओर फलों के बाग़ान थे।
उनके क्षेत्र का राजा जो है, अपने पुरखों के नाम पर टिका हुआ है। बाहर के दुश्मनो से हार हार कर बहुत ही कमजोर हो चुका है। परंतु अपने क्षेत्र में उसका दबदबा अभी भी क़ायम है। जनता को वैसे ही सताया जाता है। उसके चाटुकार मंत्री और अधिकारी पूरे क्षेत्र में जगह जगह सुंदर स्त्रियों की खोज करते। चापलूसी और बड़े पद पाने की आस में अधिकारियों द्वारा उन सुंदर युवतियों को राजा के महल में धकेल दिया जाता।
दूसरा चैप्टर है प्रेम का। नरेंद्र यश शुरू से ही भिक्षु बनना चाहते थे। संघ की दुनिया और उसके ज्ञानी पुरुष उनको हमेशा से ही अपनी ओर आकर्षित करते थे। परंतु इसी समय इनकी मुलाक़ात होती है भद्रा से। भद्रा से मिलने के बाद उनका झुकाव गृहस्थ जीवन की तरफ़ होने लगता है। ना चाहते हुए भी वो भद्रा की तरफ़ खिचते चले गये। कड़ाके की ठंड वाली बारिश में भींगते हुए भी प्रेम वर्षा का आनंद आने लगा।
अब दोनो के परिवारों की भी सहमति थी।परंतु इसी समय कश्मीर के राजा के अधिकारीयो की नज़र भद्रा पर पड़ी। चाटुकारिता के चलते वो भद्रा को राजा को सौंपना चाहते थे। उन्होंने भद्रा के पिता से इसके बारे में बात करी। कि तुम्हारी बेटी को राजा से विवाह कराके कश्मीर की रानी बनाएँगे। उसके पिता तुरंत तैयार हो गए। भद्रा नहीं मानी। फिर भी उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ उसे राजा के महल भेज दिया गया। नरेंद्र यश अब पहले ही की तरह अकेले पड़ चुके थे। उनके जीवन में फिर से पतझड़ का मौसम आ गया था। ऐसा समय जब पेड़ से एक एक करके पीली पत्तियाँ साथ छोड़ती चली जाती है।
तीसरा चैप्टर है नरेंद्र यश के भिक्षु बनने को लेकर- भद्रा का साथ छूटने के बाद नरेंद्र भिक्षु बन जाते है। 3 से 4 साल तक दीक्षा प्राप्त करते है। वहा के संघ का वर्णन है। बहुत सारे अलग अलग देशों से भिक्षु आकर रहते है वहा। एक प्रकार से melting pot of culture की तरह है। जहाँ अलग अलग जगह के लोग और संस्कृतिया आपस में आकर मिलती है।
इससे आगे के जो चैप्टर है उन्हें नरेश यश के यात्रा स्थलों के हिसाब से बनाया गया है। हर जगह की अपनी कहानी है। जहाँ जहाँ वह जाते है, वहा पर की लोक कथाओं के बारे में कहानी है। इन कहानियो को भी पढ़ के अलग आनंद मिलता है। बाक़ी के चैप्टर को निम्नलिखित रूप से बाटा गया है।-
गांधार-कश्मीर की यात्रा
कान्यकुब्ज की ओर
मगध की यात्रा
सिंहल देश में (श्री लंका )
स्वदेश की ओर वापसी
हिमालय के पार की यात्रा
कांस्य देश में
कूँची देश में
दिशा परिवर्तन
घूमंतुओ की भूमि
शीत समुद्र और महा मरुभूमि
महाचीन की ओर
जीवन संध्या
दुनिया के लगभग 50 देश और सैकड़ों संस्कृतिया देखने के बाद यह साफ़ है कि सबकी संस्कृति,व्यवहार और समाज का तरीक़ा अलग अलग है। आप जिस चीज़ को एक समाज में घृणित समझते है दूसरे में उसे पवित्र माना जाता है। उनके खान पान रहन सहन सब अलग है। अतः ऐसा ज़रूरी नहीं की जो आपके संस्कृति में ग़लत है वो दूसरे में भी ग़लत हो। इसी बात में घुमंतू होना महत्वपूर्ण है। क्यूँकि इससे सम्पूर्ण सच्चाई नज़र आती है। जो ज्ञान एक समाज में अधूरा है वो दूसरे समाज में जाके पूरा होता है।
कूप मंडुक जीवन जीने से सिक्के का सिर्फ़ एक पहलू नज़र आता है। और सिर्फ़ वही पहलू अच्छा लगता है। जबकि ऐसा नहीं है। ख़ूबसूरती सबमें है, बस उसे ढूँढने और उनको neutral तरीक़े से देखने में है।
हालाँकि इस उपन्यास की हिंदी काफ़ी कठीन है। और बहुत ही ज़्यादा यात्रा वृतांत के ऊपर आधारित है। जिसमें हर जगह की जानकारी, ख़ूबसूरती, लोक कथाओं समाज के बारे में वर्णन मिलेगा। परंतु इससे पाठक को अलग अलग समाज को समझने में मदद मिलेगी।
लेखक
इस विस्मृत्य यात्री उपन्यास के लेखक श्री राहुल संस्कृत्यायन जी है। इनके बारे में इस website पर जानकारी उपलब्ध। इसके लिए यहा क्लिक करे।
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