मृगनयनी उपन्यास की कथावस्तु
मृगनयनी उपन्यास की कहानी है, कला और सामर्थ्य के संघर्षो के बीच की कहानी। जब सामर्थ की ज़रूरत ना हो तो कला आगे आगे चलती है। और ठीक इसका उल्टा होता है जब संघर्ष चरम अवस्था में हो।कला का विकाश या प्रयास इतिहास की गहरी खाइयों में खो जाता है।
कला का विकाश तभी होगा जब स्थिरता हो। जब लोगों की मूलभूत सुविधाए पूरी हो तभी उनका ध्यान कला की तरफ़ जाता है। हाँ , आपने यह ज़रूर अनुभव किया होगा की कला, साहित्य का टेस्ट कुलीन वर्ग यानी की elite क्लास में ज़्यादा होता है वनिस्पत आम जनता के।जब लोग एक जगह से दूसरे जगह तक लगातार भटक ना रहा हो। जैसे इधर उधर घूमते नट और बंजारे, युद्ध की तलाश में देश विदेश को रौदने वाले मंगोल और तुर्क। ये मंगोल और तुर्क भी तो खाना बदोस ही थे। जब कई सालो तक एक देश से दूसरे देश तक आक्रमण करते रहे तो कौन सी कला इनके यहा विकसित हुई। चाहे गायन हो, मूर्ति कला हो या स्थापत्य कला। ये कलायें भी तभी विकसित हुई जब ये और उनके आगे के वसंज कही जाकर बसे और स्थिर हुए।
लेखक
मृगनयनी उपन्यास के लेखक है बृन्दावन लाल वर्मा। ये उपन्यास लगभग 1950 के आसपास लिखा गया था। बृंदावन लाल वर्मा जी के नाम पर और भी कृतियाँ है जैसे कि झाँसी की रानी इत्यादि।इनका जन्म 1889 साल में हुआ था। ये पद्मा भूषण पुरस्कार तथा सोवीयत लैंड नेहरू अवार्ड से सम्मानित थे।
मृगनयनी उपन्यास का समय काल :
इस उपन्यास की कहानी लगभग 1500 के आसपास की है। दिल्ली में इस समय सिकंदर लोधी, गुजरात में सुल्तान बर्घरा, मालवा में नसीरुद्दीन ख़िलजी, मेवाड़ में रायमल और राणा सांगा, और ग्वालीयर में राजा मान सिंह की सत्ता थी।
मुख्य पात्र
इसके मुख्य पात्र है मृगनयनी, लाखी, राजा मान सिंह, अटल, बैजू बावरा, विजयजंगम, सिकंदर लोधी, ग़यासुद्दीन ख़िलजी और नसीरुद्दीन ख़िलजी।
पात्र परिचय और कहानी
मृगनयनी जिसका दूसरा नाम निन्नी भी है।ग्वालीयर राज्य के छोटे से राई गाव में रहती है। शरीर हृष्ट पुष्ट ,खूबसूरत और शिकार करने तथा तीर बरछी चलाने में माहिर।अटल उसका भाई है। परिवार में इनके सिवा और कोई नही है। आर्थिक स्थिति से काफ़ी कमज़ोर है। थोड़ा बहुत खेत है, जिसमें फसल बस पेट भरने के बराबर ही निकलती है। ये दोनो गूजर जाति के है। उनके गाव में एक और लड़की है लाखी। लाखी निन्नी के बचपन की दोस्त है। लाखी के पिता और भाई सिकंदर लोधी के ग्वालियर पर किए हमले के कारण मारे जाते है। घर में सिर्फ़ बूढ़ी माँ है।वो भी कुछ दिनो बाद चल बसती है। लाखी जाती से अहीर है। लाखी और निन्नि के भाई अटल आपस में प्रेम करते है। परंतु जाति अलग अलग होने के कारण दोनो गाव वालों से डर डर के रहते है।
लाखी और मृगनयनी गाव से दूर जंगल में पैदल नंगे पाव शिकार करने के लिए जाती है। और शिकार में भैंसे, जंगली सूअर जैसे बड़े बड़े जानवरों का शिकार करती है। ये ऐसे शिकार है जिनको करने में बड़े बड़े योद्धाओं के भी पसीने छूट जाते थे। इस कारण इन दोनो की ख्याति दूर दूर तक फैली। उनके इस वीरता के बारे में ग्वालियर के राजा मान सिंह को भी गाव के पुजारी बोधन पंडित के द्वारा पता चला। बोधन पंडित निन्नी और लाखी के गाव मंदिर का पुजारी था। राजा ने बोधन कहा चलो कभी तुम्हारे गाव की तरफ़ आता हूँ शिकार खेलने। इसी बहाने तुम्हारे गाव का मंदिर जिसे सिकंदर ने तहस नहस कर दिया था। उसे बनवाऊँगा। और लाखी एवं मृगनयनी से भी मिल लूँगा। मृगनयनी और लाखी की ख़ूबसूरती और बहादुरपना की बात मालवा के सुल्तान ग़यासुद्दीन ख़िलजी के कानों में भी पड़ी। और ग़यासुद्दीन ने अपने चापलूस के सलाह पर नटो की मदद से उनका अपहरण करने का भी प्लान बना लिया।
इधर राई गाव के बाहर नट आते है। अपना डेरा जमाते है। तरह तरह के आभूषण और वस्त्र दिखा कर निन्नी और लाखी को बहलाने और फुसलाने का काम करते है। दोनो को नटों ने अपने दोस्ती के जाल में फँसा ही लिया था। वो बार बार उनसे मालवा के सुल्तान ग़यासुद्दीन के नगर चलने को प्रेरित करते। उनके साथ ही साथ ये भी प्लान था कि अगर वे बहला फुसला नही पाए तो ये उनका अपहरण कर लेंगे। मालवा के सुल्तान ने अपने चार पाँच घुड़ सवार भी भेजे राई के जंगलों में। जहाँ पर उनका सामना शिकार को निकली निन्नी और लाखी से हुआ। इससे पहले की वो उन दोनो को पकड़ पाते। निन्नी और लाखी ने तेज़ी तेज़ी से तीर और बरछी चला कर दो घुड़सवारों को मार गिराया। बाक़ी बचे दो घुड़सवार अपनी जान की सलामती ले कर उन जंगलों से भाग निकले। अब इस बात की खबर पूरे गाव और आसपास के राज्यों में जंगल में लगी आग की तरह फैल गई।उनके इस बहादुरी का पता राजा मान सिंह को भी चला।
कुछ समयोपरांत मान सिंह राई गाव में शिकार खेलने आते है। उनके शिकार के खेल में ये दोनो लड़कियाँ भी भाग लेती है। और फिर उसी बहादुरी से शिकार भी करती है। राजा अपनी आँखो से निन्नी और लाखी की वीरता देखते है।राजा को निन्नी उर्फ़ मृगनयनी पसंद आ जाती है। उसके भाई अटल और निन्नी की सहमति से राजा की शादी निन्नी उर्फ़ मृगनयनी से हो जाती है। हालाँकि इन दोनो की भी जातियाँ अलग अलग थी। जैसे मृगनयनी गूजर तो राजा तोमर जाति के। गाव के पंडित बोधन के अनुसार, राजा देवता का रूप होता है। उसके लिए कोई जाति मायने नही रखती। वो किसी भी जाति में शादी में कर सकता है। इसे सुनकर अटल के मन में भी थोड़ी सी आशा जगी। शायद पंडित उसकी और लाखी की शादी के लिए भी मान जाए।शादी के बाद मृगनयनी और राजा, ग्वालियर अपनी राजधानी लौट आते है। मृगनयनी का परिचय ग्वालियर के रजवाड़े में तरह तरह की कलाओं से होता है, जैसे गायन, संगीत, चित्रकला और नृत्य कला।धीरे धीरे वो बैजू बावरा और उसकी शिष्या कला के सानिध्य में गायन और नृत्य सिखना प्रारम्भ करती है।और जल्द ही उसमें पारंगत हासिल कर लेती है।
इधर गाव में अटल और लाखी के रिश्ते को लेकर लोग तरह तरह की बातें करने लगते है। अटल गाव के पुजारी बोधन पंडित से उनकी शादी करने में मदद माँगता है। ये सोच कर कि शायद वो अब राजा का साला है। तो पंडित और गाव वाले उसकी बात को मान लेंगे।परंतु बोधन पंडित उनके विजातीय विवाह को धर्म के ख़िलाफ़ बताता है। और गाव वालों को इसके बारे में भड़काता भी है। बोलता है की राजा देवता का रूप होता है। वो किसी भी जाति में विवाह कर सकता है। परंतु अटल गूजर लाखी अहीर से शादी नही कर सकता। अटल सोचता है कि आक्रमण के समय में तो जान बचाने, और मंदिर बचाते समय तो किसी को कोई जाति से मतलब नही था। सब हिंदू एक थे। पर जब शादी की बात आई तो सब अलग अलग। ख़ैर अटल और लाखी बिना किसी पुजारी की मदद से खुद ही शादी कर लेते है। उनके गाव वालों को ये बात नागवार गुजरती है। और राजा का साला होने के बावजूद उसे और लाखी को बेरहमी से गाव से निकल दिया जाता है।
लाखी और अटल अपने गर्व और ख़ुद्दारी के चलते अपनी बहन के नगर भी नही जा सकते।अतः उन्होंने नटो के साथ राज्य निकलने का फ़ैसला कर लिया। अब नट बड़े खुश थे। कम से कम दो लड़की नही एक तो हाथ लगी। सुल्तान के हरम में इस लाखी को बेच कर अच्छा इनाम पाएँगे। चुपके से नटो ने इसकी खबर मालवा के सुलतान को भी पहुँचा दी।
चलते चलते वो सब नरवर के क़िले के आस पास पहुँचे। जहाँ पर सुल्तान पहले ही आक्रमण कर चुका था। नरवर ग्वालियर राज्य का सीमावर्ती क़िला था। जहाँ से क़ब्ज़े के बाद ग्वालियर पर आक्रमण किया जा सकता था। चारों ओर से नरवर की घेराबंदी कर दी गयी थी। आसपास के गाव और नगर के लोग क़िले के अंदर आकर शरण लिए हुए थे। नटो की टोली ने सुल्तान के जासूस की मदद से रात को अटल और लाखी को लेकर क़िले से भागने की तैयारी कर चुके थे। इसी बीच लाखी को उनके प्लान की खबर लग गई। कि कैसे वो उसे सुल्तान के हाथों बेचने के फ़िराक़ में है। रात को क़िले की दीवार कूदते समय, लाखी उनकी रस्सी काट कर उन नटो को मार देती है।
अगले सुबह पूरे क़िले के अंदर बात फैल जाती है। लेकिन अलग रूप में। उनको लगता है कि लाखी ने सुल्तान के जासूस और नटो को मारकर, क़िले का भेद होने से रोका है। इसी बीच ग्वालियर के राजा की फ़ौज भी क़िले में दाखिल होती है। राजा और सुल्तान की फ़ौज के बीच में कड़ा मुक़ाबला होता है। सुल्तान को पीछे हटना पड़ता है। लौटकर सुल्तान अपने इतिहासकार को किताब में लिखने को कहता है। कहता है कि लिखो की मैंने राजा मान सिंह को हराकर क़िले पर क़ब्ज़ा कर लिया। और शासन करने हेतु क़िले को किसी दूसरे सूबेदार को दे दिया। आपको पता चल गया होगा,कि कैसे इतिहास लिखा गया।
राजा अटल और लाखी को लेकर अपने राजधानी लौट आता है। अपनी रानी मृगनयनी के लिए अलग से महल बनवाया जिसका नाम गुजरी महल रखा गया। इससे पहले के युद्ध में जब सिकंदर लोधी ग्वालियर को जीतने में नाकाम रहा तब जाते जाते उसकी सेना ने पीने के सारे स्रोतों को बर्बाद कर दिया था। कुए मिट्टी से भर दिए। जो कुए भर नही पाए उसमें लाशें काट कर फ़ेक दिया। सारी नहरें बर्बाद कर दी। खेत खलिहान जला दिए थे। जितने मंदिर रास्ते में पड़े उन्हें तोड़कर भ्रष्ट कर दिया। सिकंदर लोधी के दिल्ली लौटने के बाद अब कुछ साल के लिए शांति थी। राजा ने सबसे पहले कुए और तालाब बनवाए। नई नहरें बननी चालू हुई। मंदिरो की मरम्मत का काम चालू हो चुका था। क़िले के अंदर नया महल बनना चालू हुआ। बैजू बावरा और अन्य लोगों की देख रेख में संगीत विद्यालय का निर्माण हुआ। लोगों की रूची धीरे धीरे कला की तरफ़ फिर से बढ़ने लगी।
अब कई लोगों के बीच में ये विवाद और बहस का विषय बन गया कि कला की तरफ़ राजा का ज़्यादा झुकाव हो गया है। वो सेना और सुरक्षा से अपना ध्यान हटा लिया है। ये बात ज़रूर थी कि इस शांति के माहौल में कला का विकाश तेज़ी से हो रहा था। परंतु राजा मान सिंह ने सेना और सुरक्षा पर भी उतना ही ध्यान दिया।
कुछ साल बाद ग्वालियर पर फिर से सिकंदर का आक्रमण होता है। इस बार पिछली बार से बहुत बड़ी सेना के साथ। इसी बीच दिल्ली के सुल्तान ने जौनपुर सल्तनत पर भी विजय प्राप्त कर ली। सिकंदर ने आगरे में सेना की छावनी बनाई थी। क्यूँकि दिल्ली से ग्वालियर की दूरी काफ़ी थी। और आगरा से ग्वालियर पहुँचना आसान। ग्वालियर हमले के समय इस बार अपनी सेना को तीन भाग में बाटा। पहली सेना की टुकड़ी राई गाव की पहाड़ी पर बने नए दुर्ग की तरफ़। दूसरी ग्वालियर राजधानी की तरफ़। और तीसरी नरवर क़िले की तरफ़।
नरवर में वहा के एक पुराने राजपूत ने सिकंदर लोधीका साथ दिया। जिससे नरवर का क़िला ग्वालियर के हाथ से निकल गया। सिकंदर की सेना इस क़िले के अंदर घुस के सारे मंदिरो और मूर्तियों को तहस नहस कर दिया। उनके मुल्लों के मुताबिक़ इन काफिर हिंदुओ के भगवान को तोड़ोगे तो इनका हौसला अपने आप टूट जाएगा।उधर दूसरी टुकड़ी द्वारा ग्वालियर क़िले की पूरी तरह से घेरेबंदी हो चुकी थी। राजा अपने सिपाहियों की टुकड़ी को गुर्रिल्ला युद्ध के माध्यम से भेजता था। जो सिकंदर की सेना को बहुत नुक़सान पहुँचा कर लौट आते थे। धीरे धीरे राजा की सेना ने सिकंदर को पीछे की तरफ़ भागने पर मजबूर कर दिया।
उधर राई के दुर्ग में लाखी और अटल सिकंदर की सेना का सामना करते करते वीरगति प्राप्त हुए। परंतु जाते जाते सिकंदर की इस सेना को भी पीछे की तरफ़ धकेल दिया। अबकी बार फिर सिकंदर को मुँह की खा कर वापस लौटना पड़ा।
कहानी लगभग यही समाप्त होती है।
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