हमारे पुराणो और ऐतिहासिक किताबों से चुन कर निकाली गई माताओं की कहानियो का संग्रह है किताब Boons and Curses। यह किताब इन पौराणिक माताओं की कहानियो को मातृत्व और सतीत्व को केंद्र में रखते हुए लिखी गई है।इस किताब में माता अनन्य हद तक अपने संतान के लिए गुज़र सकती है। अपने सम्मान और गर्व की रक्षा के लिए कई सारे अपमान और कलंक के दरिया को पार कर सकती है। प्रमुख माताओं जिनकी कहानिया है इस किताब में – देवताओं की माता दिती, असुर दैत्यों की माता अदिति, अहिल्या, सीता, कुंती, बृहस्पति की पत्नी तारा, जबाला, मंदोदरी, गांधारी, रावण की माँ, सीता इत्यादि की कहानिया है।
किताब की शुरुआत
इस किताब Boons and Curses की शुरुआत होती है- कृष्ण और कुंती के बातचीत से। महाभारत का युद्ध खतम हो चुका है। राजधानी के महल में सारे पांडव अपनी माता कुंती, धृतराष्ट्र और गांधारी के साथ रहते है। एक दिन खाने की मेज़ पर खाने में मांस खाते समय धृतराष्ट्र के मुँह से हड्डियों के चबाने के आवाज़ आ रही थी। भीम ने मज़ाक़ उड़ते हुए बोला- जब मैंने दुर्योधन और दुहशासन की हड्डियाँ तोड़ी तब भी ऐसे ही आवाज़ आ रही थी। चबड़-चबड़। इस बात से धृतराष्ट्र बहुत दुःखी हुए और खाने के मेज़ से उठकर चले गए। साथ में कुंती और गांधारी भी उठ कर उनके साथ हो लिए।
कुंती बहुत दुखी थी अपने पुत्रों के इस व्यवहार पर। क्या इसी तरह के पुत्रों के लिए उसने जीवन में इतने कष्ट उठाए। जंगल जंगल की ठोकरें खाई। महाभारत के युद्ध में अपने बड़े पुत्र को खो दिया। और आज वही पुत्र राज पाठ पाने के बाद अपने बड़ों से ऐसा व्यवहार कर रहे है।उन्होंने इसी दुःख में कृष्ण को याद किया। कृष्ण आए और फिर दोनो के बीच वार्तालाप चालू हुआ।
इस वार्तालाप में कृष्ण ने बहुत सारी माताओं की कहानिया सुनाई। जिन्होंने अपने पुत्र को सम्मान और सत्ता दिलाने के लिए संघर्ष किया। माता के लिए पुत्र कभी राजा या महान नही होता है। वो होता है तो सिर्फ़ उसका प्यारा दुलारा पुत्र। जिसपर वो अपना सर्वस्व न्योछावर कर देती है।
किताब Boons and Curses की कुछ कहानियाँ
इस किताब boons and curses में हम सारी कहानियो पर तो नही पर कुछ कहानियो के कुछ भागो को देखेंगे। जिससे मुझे लगता है आप अभी तक अछूते रहे होंगे।
देवों की माता दिती और दैत्यों की माता अदिति दोनो राजा दक्ष की पुत्री थी। सती को छोड़ कर दक्ष की सारी पुत्रियों ने कश्यप ऋषि से विवाह किया था। कश्यप ऋषि ब्रह्मा के मानस पुत्र थे। मानस मतलब अपनी इच्छाशक्ति से उत्पन्न। जिनकी कोई माता नही है। इन्ही कश्यप ऋषि के एक पत्नी से जन्मे देव और दूसरी पत्नी से दैत्य। और पत्नियों से पैदा हुए,गंधर्व, वसु, यक्ष, मानव इत्यादि। कुछ समय बाद सत्ता के वर्चस्व के लिए दिती और अदिति के पुत्रों में जंग छिड़ती है। किस तरह से दोनो माताए सत्ता के इस संघर्ष में पुत्रों का मार्गदर्शन और सहायता करती है। उसकी कहानी है इसमें।
बाली और सुग्रीव की माता की कहानी
एक और कहानी-क्या आपको मालूम है बाली और सुग्रीव के जो पिता थे वही उनके माता भी थे। दरअसल में किसी श्राप की वजह से बाली और सुग्रीव के पिता स्त्री में बदल गए थे। अपना पिछला जीवन भूल कर वो औरत बन कर जंगलो में भटक रहे थे। इसी समय सूर्य की नज़र उनपर पड़ी। उनके रूप से मोहित होकर सूर्य का वीर्य स्खलित होकर उनके ऊपर गिरा। जिससे बाली का जन्म हुआ। कुछ समय बाद इसी तरह से चंद्रमा के वीर्य से सुग्रीव का जन्म हुआ।
कुछ समय बाद बाली और सुग्रीव के पिता श्राप से मुक्त होकर पुनः पुरुष वेश में आ गए। इसी में आगे कहानी है कैसे बाली के मरने के बाद, उसकी पत्नी तारा ने सुग्रीव से विवाह किया था। क्यू, ताकि उसके पुत्र अंगद की युवराज की पदवी सुरक्षित रहे और बाद में वो राज गद्दी प्राप्त कर सके। मंदोदरी का भी विवाह विभीषण के साथ हुआ था रावण के मरने के बाद।
तारा बृहस्पति और चंद्रमा की कहानी
बृहस्पति की पत्नी तारा और चंद्रमा के प्रेम की कहानी है। चंद्रमा बृहस्पति के आश्रम में आते है शिष्य बन कर। तारा का बृहस्पति से प्रेम विवाह हुआ होता है। परंतु बृहस्पति अपनी व्यस्तता और समस्याओं के कारण तारा को समय नही दे पाते है। विवाह के बाद दोनो बहुत कम ही एक दूसरे के पास और सम्बंध में आ पाते थे। इसी बीच चंद्रमा आश्रम में आते है। तारा और चंद्रमा में प्रेम हो जाता है। और दोनो एक दूसरे के साथ चंद्र महल में भाग जाते है। देवता अपने गुरु का इस तरह अपमान सहन ना कर पाए और उन्होंने चंद्रमा पर आक्रमण करने की तैयारी का निश्चय किया। उधर असुर भी ये मौक़ा क्यू चूकते, उन्होंने चंद्रमा को अपना समर्थन देने का फ़ैसला किया।
स्थिति देवासुर संग्राम की बनने लगी। ब्रह्मा ने हस्तक्षेप किया और तारा को समझा बुझा कर बृहस्पति के आश्रम ले आए। बृहस्पति ने भी अपनी गलती स्वीकार की। और पूरे मन से तारा को स्वीकार किया। कुछ समय बाद तारा का पुत्र पैदा हुआ। जिसका नामकरण होना था। पुरोहित ने बृहस्पति को नाम सुझाने के लिए बोला। इसी समय चंद्रमा आ गए और बोला ये पुत्र मेरा है, इसको नाम सिर्फ़ मैं दूँगा, बृहस्पति नही। अब ये निर्णय नही हो पा रहा था कि पुत्र किसका है। बृहस्पति या फिर चंद्रमा का। तारा ने बोला ये पुत्र मेरा है, मेरी कोख से जन्मा है, और इस पूरी सभा में मुझे साबित करने की ज़रूरत नही है कि इसका पिता कौन है।
महर्षि जबाली और उनकी माता जबाला की कहानी
अगली कहानी है महर्षि जबाली और उनकी माता जबाला की। जबाला बहुत ही पवित्र स्त्री थी। परंतु बचपन से ही खूबसूरत और अनाथ होने के कारण समाज के पुरुषों ने उनका बहुत शोषण किया। इस शोषण के स्वरूप जबाली का जन्म हुआ। बचपन से बहुत ही प्रतिभावान। परंतु पिता ना होने के कारण उनको समाज और अनेक आश्रमों में दुत्कार ही मिला। आख़िर में जब अपनी माँ जबाला से अपने पिता के बारे में पूछा तो जबाला ने अपनी सारी कहानी जबाली को बताई। जबाली की नज़र में अपनी माँ का सम्मान और बढ़ गया। आगे से उन्होंने अपना नाम अपनी माता जबाला के ऊपर जबाली रखा।
इस किताब में अन्य ढेरों कहानिया है, जो आपको लम्बे समय तक इस किताब से चिपका के रखेंगी।
मेरा सुझाव किताब Boons and Curses ke liye
जिनको भारतीय मिथॉलजी की कहानिया पसंद है। उनके लिए यह किताब boons and curses बिलकुल पर्फ़ेक्ट है। आपको बहुत सारी कहानिया मालूम होंगी इस किताब boons and curses के माध्यम से जो आपको पहले नही पता थी।
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बहुत ही शानदार कहानिया है इस किताब में। लगभग ६ महीने पहले ही मैंने इसे पढ़ा था। और इसका परिचय भी आपके लेख में शानदार तरीक़े से प्रस्तुत किया गया है। धन्यवाद।लिखते रहिए। I have checked out other articles also available on website. They are also equally good. keep up the good work.
thank you for the good words. will try working toward betterment.
बहुत अच्छे से कहानी को प्रस्तुत किया गया है।शानदार
Bahut hi Sundar
बहुत अच्छा ग़ाज़ी साहब। यूँ ही शानदार लेखों द्वारा हम पाठकों का परिचय यत्र तत्र बिखड़ी पौराणिक कथाओं से कराते रहिए। आपका स्वाध्याय और आपकी रचनाशीलता हम युवा लोंगो के लिए प्रेरणा स्रोत है ।
पुस्तक के लेखक का परिश्रम तो फलीभूत हुआ ही होगा, परंतु इस लेख को निःस्वार्थ भाव से लिखने वाले लेखक का पुरुषार्थ भी प्रशंशनीय है।