कब तक पुकारूँ उपन्यास संक्षेप में

समय और जगह

कब तक पुकारूँ उपन्यास की कहानी लगभग 1920 से लेकर 1950 के बीच की है। क्षेत्र है इसका उत्तर प्रदेश और राजस्थान की सीमा पर बसा एक गाँव। और कहानी करनट समुदाय को लेकर विकसित की गई है। 

मुख्य पात्र

कब तक पुकारूँ उपन्यास की कहानी का मुख्य पात्र सुखराम है। और अन्य प्रमुख भूमिका में है उसकी पत्निया प्यारी और कजरी, सुखराम की पुत्री चंदा और उसका प्रेमी नरेश। साथ ही साथ में एक अधूरा क़िला और अंग्रेज़ी मेम सूज़न की भी अहम भूमिका है।

सुखराम जाति से करनट है। करनट जाति घुमंतू प्रकार की है।मेलों और अन्य जगह पर घूम घूम कर नृत्य और करतब दिखा कर पैसे कमाते है। इस जाति के लोग आस पास के गाँवों में सेंध लगाकर चोरी किया करते है। इस समाज के पुरुष और स्त्री  शराब और अन्य प्रकार के नशे का खुलकर सेवन करते है। स्त्रियाँ पैसे कमाने के लिए अपना शरीर भी बेचती है। और इसे उनके इस समाज में बुरा नहीं माना जाता। स्त्रियाँ एक साथ कई पुरुषों के साथ सम्बंध रख सकती है। ऐसे ही पुरुष भी। इस जाति को समाज में सबसे नीचे स्तर पर देखा जाता है। और इनके कबीले गाव से दूर ही लगाए जाते है। इनका छुआ और जूठा समाज में सबसे  नीची माने वाली जाति भी नहीं छूती है।

कहानी

कब तक पुकारूँ उपन्यास की कहानी दो भाग में चल रही होती है, एक वर्तमान में 1950 के आसपास। वर्तमान वाली कहानी सुखराम की बेटी चंदा और उसके प्रेमी नरेश की है। नरेश जाति से ठाकुर होता है। उसके घर वाले चंदा के ख़िलाफ़ रहते है। दूसरी कहानी भूत काल में लगभग 1925-40 के बीच में चल रही होती है। भूतकाल वाली कहानी सुखराम और उसकी दोनो पत्नियो के इर्द गिर्द घूमती रहती है।

सुखराम, जो कि इस करनट  जाति में पैदा होते हुए भी उन सबसे अलग है। कभी ना चोरी, ना ज़्यादा शराब, ना ही अन्य स्त्री से सम्बंध। सुखराम अपने आपको कर नटनी के पेट से पैदा हुआ ठाकुर जाति का कहता है। दर असल में सुखराम से तीन चार पीढ़ी पहले एक ठकुरानी थी। जो की उस अधूरे क़िले के वंश के राजा के छोटे भाई की पत्नी थी। राजा और उसकी पत्नी ने षड्यंत्र से अपने छोटे भाई को मार दिया। तब उस ठकुरानी ने जान बचाकर करनटो की बस्ती में शरण लिया था। क्यूँकि उसे सब जगह ढूँढा जाता, लेकिन कर नटो की बस्ती में नहीं। उस समय ठकुरानी पेट से थी। उसके बच्चे का जन्म हुआ कर नट की बस्ती में।कर नटो ने इस बच्चे को पाला। यह बच्चा कोई और नहीं था यह  था सुखराम का परदादा।

सुखराम के बाप दादा और परदादा  सबकी परवरिश नटो की बस्ती में ही हुई। परदादा , दादा और बाप का विवाह कर नटो की बेटियों से हुआ। और सब एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में अपने बच्चों  को बताते आए की तू ठाकुर की संतान है, भले ही तेरी माँ कर नटनी है पर तू ठाकुर है। सूखराम के पुरखों ने रानी से सम्बंधित कुछ निसानिया सम्भाल के रखी थी और सब अपनी नीची आने वाली पीढ़ी में उस ठकुरानी की फ़ोटो और निशानी देते चले गए। 

कहने को तो सुखराम अपने को ठाकुर कहता था, परंतु उसके समाज में या गाव में उसे एक नीच करनट की नज़र से ही देखा जाता था। सुखराम शरीर से हृष्ट पुष्ट था, बलशाली और बलवान भी था। एक साथ 10 10 लठैतों से लड़ सकता था। जंगल में जाते हुए बाघ से भी लड़ लेता था सिर्फ़ एक कटार के दम पर। सुखराम को चिकित्सीय विद्या में भी अच्छी जानकारी थी, जो उसको पीढ़ी दर पीढ़ी प्राप्त हुई थी। इसी के दम पर वह कुछ पैसे कमा लेता था। कुछ करतब वग़ैरह दिखा लेता था, परंतु उसने चोरी, हत्या इत्यादि कभी नहीं की।

उसका विवाह होता है प्यारी के साथ। जो कि जाति से करनट थी और उसी बस्ती में अपने माँ बाप के साथ रहती थी। बस्ती की सारी स्त्रियाँ पैसे कमाने के लिए दूसरे पुरुषों के साथ रात गुज़ारती थी, लेकिन सुखराम अपनी बीबी प्यारी को ऐसा नहीं करने देता था।

एक बार गाव में चोरी होती है। पुलिस और दरोग़ा सुखराम को चोरी के झूठे आरोप में जेल में बंद कर देते है। दरोग़ा की बुरी नज़र उसकी पत्नी प्यारी पर पड़ चुकी थी। सुखराम को बहुत बुरी तरह मारते पिटते है। लेकिन वह चोरी का आरोप स्वीकार नहीं करता है। ऐसे में उसे जेल से छुड़ाने के लिए प्यारी को अपना जिस्म उस दरोग़े को सौंपना पड़ता है। और अपनी मनमानी करने के बाद दरोग़ा सुखराम को जेल से रिहा कर देता है। कजरी की नज़र में अपने पति को छुड़ाने के उसके शरीर का बेचना कोई पाप नहीं था। वो कहती की मेरी बस्ती की औरतें तो पैसे कमाने के लिए अपने आप को बेच सकती है। तो मैं अपने पति को बचाने के लिए क्यू नहीं। 

कुछ समय बाद गाँव के कुछ ठाकुर प्यारी के ऊपर हाथ डालते है और उसके साथ ज़्यादती करते है। प्यारी अपने  अपमान और नफ़रत को पचा नहीं पाती है। और उसका बदला लेने के लिए उसके दिमाग़ में एक तरकीब सूझती है। वह गाव के रसूख़ सिपाही और जमादार रुस्तम खान से मदद माँगती है। रुस्तम खान प्यारी को उसका बदला पूरा करने में मदद करता है। लेकिन उसके लिए प्यारी को उसकी रखैल बन कर रहना पड़ा। रुस्तम खान भी बहुत दुष्ट इंसान था, दो तीन लठैत पल रखे थे और उनके दम पर पूरे गाव में बुरे बुरे काम करवाता और पैसे वसूल करता। गाव की बहुत सारी औरतों पर उसकी बुरी नज़र बनी रहती थी।

प्यारी के रुस्तम खान के पास जाने के बाद इधर सुखराम अकेला पड़ चुका है। बार बार उसकी नज़र अपने पुरखों के अधूरे क़िले पर भी जाती रहती है। वह उस अधूरे क़िले का फिर मलिक बनना चाहता है। फिर से ठाकुर बन कर अपनी रुसाख और इज्जत वापस पाना चाहता है।वह बार बार प्यारी को अपने साथ चलने के लिए कहता रहा, पर वो कभी उसके साथ लौट के नहीं आई। हालाँकि बीच बीच में वह प्यारी से मिलने ज़रूर जाता रहता है। सुखराम अपनी बस्ती में अपने झोंपड़े में अकेला पड़ा रहता है। साथ में रहते है उसका घोड़ा और एक कुत्ता। उसे प्यार हो जाता है, कजरी से। कजरी पहले से ही शादी शुदा है पर वो अपने पति से खुश नहीं रहती है। एक दिन  कजरी के पति के सहमति से कजरी और सुखराम का विवाह हो जाता है।

प्यारी जो कि सुखराम की पहली पत्नी है, कजरी के नाम से जल भूल जाती है। परंतु बाद में जब दोनो एक दूसरे से मिलती है तो दोनो कजरी और प्यारी दोस्त बन जाते है। अब प्यारी सुखराम के पास वापस आना चाहती है। परंतु रुस्तम खान से छुटकारा बहुत मुश्किल था। रुस्तम अपने आदमियों की मदद से सुखराम को मारना चाहता था। परंतु उसे मौक़ा नहीं मिल रहा था।

इसी बीच रुस्तम खान के एक लठैत ने गाव की एक महिला का बलात्कार करके, रुस्तम खान के घर में शरण लिया। गाव वालों ने  ग़ुस्से में आकर उसके घर में आग लगा दी। मौक़ा देखकर कजरी और प्यारी रुस्तम खान और उसके आदमी की हत्या करके भाग निकलते है। इस द्वन्द में प्यारी बुरी तरह घायल हो जाती है। कजरी प्यारी और सुखराम अपने कबीले से भाग कर कही दूसरे कबीले में शरण लेते है। चोट के चलते प्यारी की मृत्यु हो जाती है। जिसके चलते सुखराम और कजरी दोनो पागल से हो जाते है। 

इससे पहले जंगल के रास्ते भागते समय सुखराम,कजरी और प्यारी की मुलाक़ात डाकुओं के सरदार से होती है। सुखराम और डाकू का सरदार एक तरह से अच्छे मित्र बन जाते है। इन डाकू सरदार की मदद से सुखराम अपने दुश्मनो से चुन चुन कर  बदला लेता है। चाहे वो दरोग़ा हो, दीवान हो, या गाव के ठाकुर और पंडित। इन्ही लोगों ने मिलकर सुखराम को फँसाया था और जेल में डाला था। इन सबने उसकी पत्नियो बार बुरी नज़र डाली थी। 

प्यारी के मरने के बाद अब केवल सुखराम और कजरी बचते ही। खाने पीने के लिये जंगल के शिकार पर निर्भर थे। कमाने खाने का कोई और साधन नहीं था। दोनो अब यह गाव छोड़ कर कही दूर जाने का फ़ैसला करते है। रात को दोनो चुपके से निकलते है। कई घंटे और मीलों चलने के बाद एक दूसरे गाव के पास जंगल में पहुँचते है। तभी अचानक उन्हें एक स्त्री के चीखने की आवाज़ आती है। यह आवाज़ सूज़न की थी। जिसे दो डाकुओं ने उठा लिया था। और उसके साथ ज़ोर ज़बरदस्ती कर रहे थे। सूज़न अंग्रेज़ी मेम थी। जो अपने पिता के साथ सरकारी डाक बंगले में रहती थी। एक रात को वो वैसे ही डाक बंगले के बाहर घूम रही थी, कि डाकुओं ने उसे पकड़ लिया।

सुखराम बहादुरी से लड़कर सूज़न को बचाता है। और परिणाम स्वरूप सूज़न अपने सरकारी अंग्रेज पिता के यहाँ काम दिला देती है। सुखराम अब अंग्रेजो का अर्दली बन चुका है। इस वजह से लोग उसके मुँह पर ढंग से बात करने लगे। चाहे भले ही पीठ पीछे गाली देते रहे। सुखराम और कजरी बहुत बढ़िया से अपना काम निभा रहे होते है। उस अंग्रेज के यहा काम कर रहे लोग अभी भी उन्हें नीची नज़रों से देखते थे। पर सूज़न और उसके अंग्रेज पिता को उनकी जाति या समाज से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था।

सूज़न का एक अंग्रेज दोस्त था लॉरेन्स। एक बार उसके पिता के अनुपस्थिति में वो डाक बंगले पर आया। रात भर रुका। और शराब के नशे में फ़ायदा उठा उसने सूज़न के साथ बलात्कार किया। इसके चलते सूज़न गर्भवती हो गई। उसके पिता ने सूज़न को सुखराम और कजरी के साथ बॉम्बे भेज दिया। कजरी ने वादा किया को वो सूज़न की संतान को अपना बता कर गाव वापस ले आएगी और उसे पालेगी। बॉम्बे में कजरी को कोई रोग लग गया।और उसकी मौत हो जाती है। सूज़न को बेटी का जन्म होता है।जिसे वो भारी मन से सुखराम को सौंपकर वापस इंग्लैंड लौट जाती है। 

सुखराम उस बच्ची को अपने साथ लाता है गाव। उसका नाम रखता है चंदा। वो उसे अपनी बेटी से भी बढ़कर प्यार करता है। सुखराम यह राज किसी को नहीं बताता है कि चंदा सूज़न की बेटी है उसकी नहीं। सबको यही मालूम रहता है कि चंदा सुखराम और कजरी की ही बेटी है।

अब  इस समय 1950 है और यहा दोनो कहानिया आके मिलती है। चंदा की कहानी और सुखराम की कहानी। चंदा नरेश से प्यार करती है। लेकिन नरेश के घर वाले उसके ख़िलाफ़ रहते है। क्यूँकि वो ठाकुर नहीं थी। नरेश की माँ मार मार कर चंदा को बेहोश कर देती है। चंदा की जान बचाने के लिए सुखराम उसका विवाह कही और कर देता है। परंतु वह वापस अपने पिता सुखराम के यहा आ जाती है। चंदा को यह बात भी पता चलती है कि उसके पिता सुखराम ठाकुर है। और किस तरह से वो करनट बने। इसी बीच सुखराम को लंदन से सूज़न के पिता की चिट्ठी मिलती है। जिसमें वह चंदा के बारे में पूछते है। 

चंदा को जब पता लगता है कि वो अंग्रेज मेम सूज़न की बेटी है, और उस अधूरे क़िले कि ठकुराइन है तो वह पागल हो जाती है। इसी पागल पन में वह क़िले के अंदर भयानक तहख़ाने में  जाकर समय बिताने लगती है। सुखराम को लगता है उसके ऊपर उस क़िले की मालकिन ठकुराइन का भूत आ गया है। और ठकुराइन अपने अधूरे काम उसके बेटी चंदा से करनी चाहती है।इसी सोच में विक्षिप्त होकर सुखराम चंदा का गला घोट कर मार देता है। सूखरम जेल चला जाता है और उधर नरेश भी विक्षिप्त हो जाता है। कब तक पुकारूँ उपन्यास की कहानी यही समाप्त होती है।

इस कब तक पुकारूँ उपन्यास में तत्कालीन समाज में प्रचलित अशिक्षा, कुरुतियो, जाति पाति, गरीब और नीचे के जातियों पर अत्याचार को उभारने के कोशिश की गई है। सुखराम प्यारी और कजरी का प्रेम भी बहुत सही तरीक़े से प्रस्तुत किया गया है। किस तरह से तमाम योग्यताए होने के बाद भी सुखराम को एक करनट का ही जीवन बिताना पड़ता है। उस समाज में हर जाति किस तरह से अपने आप को उसके नीचे जाति से दूर रखती है। हर जाति अपने अपने आप को ऊपर करने के लिए कम से कम किसी एक जाति को नीचा चुन ही लेती है। 

लेखक

इस कब तक पुकारूँ उपन्यास के लेखक रंगेय राघव जी है।इनका परिवार मूलतः तमिलनाडु दक्षिण भारत से था। आगरा में इनका जन्म हुआ। हिंदी साहित्य के लिए इन्होंने और भी बहुमूल्य रचनायें की है।  रंगेय राघव की अन्य रचनाओं को पड़ने के लिए यहा क्लिक करे।

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