समय! अब तुम कहाँ हो कहीं कुछ खोज में हो या कहीं कुछ खो गए हो
तेरे आयाम अब पहले के जैसे तो नहीं हैं जो छूकर रूह के एहसास को गुजरा किए थे बरस कर स्नेह की बारिश में संग भींगा किए थे जो मचले थे मेरे जज़्बात के हर एक वरक़1 पर जो तड़पे थे मेरे हर दर्द के हर एक लरज़2 पर
मुझे अब लग रहा है तेरे हाथों की लम्बाई भी कुछ छोटी हुई है जो अब स्पर्श से कुछ दूर ही रहने लगी है हृदय ज्यों फट गया है लगी3 कुंठित हुई है कहो भी क्या हुआ है तुम तो दोस्त थे दुश्मन भी थे हरसू4 निहां5 थे तुम तो भूख में थे प्यास में थे हर जगह थे तुम थे आँसुओं में खुशी में ख़्वाब-गाह में हरेक मौसम में तुम थे तुम हर एक समां में तुम्हीं तन्हाई में थे तुम हर कारवाँ थे मगर क्यों खो गए अब कहाँ गुम हो गए अब तेरी यादों की गर्मी को लिए मैं उसी स्नेह को स्पर्श को पाने की रत6 में तुम्हें मैं ढूंढता हूँ हरेक जर्रे में लेकिन तेरी एक भी छुअन अब कहीं मिलती नहीं है समय! तुम सुन रहे तो पता मेरा वही है
सागर
27.04.21
1.पन्ना 2.कंपन 3.ख़्वाहिश, प्रेम 4.हर जगह
5. छुपा हुआ 6. प्रीति, आसक्त, किसी काम मे मनोयोग से लगा हुआ