इस लेख में हम केवल इस बात पर चर्चा करेंगे कि किसान आंदोलन 2020-21 केवल पंजाब और हरियाणा में ही क्यू केंद्रित है ( Why farmer’s protest is centred around only in Punjab and Hariyana)।आपने ध्यान दिया होगा कि आज कल का किसान आंदोलन बस पंजाब और हरियाणा के किसानो में ही सीमित है। यह आंदोलन भारत के बाक़ी बचे राज्यों में प्रभावी नहीं हो रहा है। आंदोलन का प्रमुख कारण क्या है, और वो तीन क़ानून कौन से है। जिसके चलते इतना प्रदर्शन हो रहा है। इसके बारे में आप यहाँ पर क्लिक करके पढ़ सकते है।
इन कारणो को जानने के लिए हम तीन बिंदुओ को केंद्र में रखेंगे-
1- MSP ( Minimum Support Price)- न्यूनतम समर्थन मूल्य
2- APMC( Agriculture produce Market Committee)- कृषि मंडी
3- Freedom in Storage of Grains- खाद्य संग्रहण में छूट
MSP ( Minimum Support Price)- न्यूनतम समर्थन मूल्य :किसान आंदोलन 2020-21
MSP भारत की सरकार द्वारा फ़सलो की ख़रीद पर पर दी जाने वाली गारंटी है कि इससे कम दाम में सरकार उनसे नहीं ख़रीदेगी। उदाहरण के लिए साल 2020-21 में गेहूँ के लिए सरकार ने MSP घोषित किया है 19.25 प्रति किलो। भले ही मार्केट में गेहूँ का दाम 15 रुपए चल रहा है, परंतु जब इसको सरकार किसानो से ख़रीदेगी तो वह उनको कम से कम 19.25 प्रति किलो का भाव किसानो को देगी। हाँ यहा पर साफ़ करना ज़रूरी है कि सरकार उतना ही ख़रीदती है जितनी उसकी ज़रूरत होती है।
सरकार द्वारा कुल 23 फ़सलो पर MSP की घोषणा की जाती है। जैसे कि मसूर, सरसों, चावल, गेहूँ तथा चना इत्यादि पर। फल, सब्ज़ी, मछली, फूल और दूध उत्पादों पर कोई MSP नहीं है।
आँकड़ो के अनुसार सबसे ज़्यादा MSP पर अन्य फ़सलो से ज़्यादा ख़रीद चावल और गेहूँ की की जाती है।देश में उत्पादन का लगभग 37% गेहूँ और 44% चावल MSP पर बिकता है। जो अन्य फ़सलो के मुताबिक़ पर्सेंटिज में बहुत ज़्यादा है। इन में गेहूँ और चावल का उत्पादन पंजाब और हरियाणा में सबसे ज़्यादा होता है।
एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक़ पूरे भारत में सिर्फ़ 6 फ़ीसदी ही किसान अपनी फसल MSP पर बेच पाते है। पूरे देश के इन 6 फ़ीसदी किसानो में पंजाब और हरियाणा के किसानो की संख्या सबसे ज़्यादा है। पंजाब में लगभग 97% गेहूँ और 80% चावल की ख़रीद MSP पर होती है। यही आँकड़ा अगर उत्तरप्रदेश, बिहार और राजस्थान में देखे तो क्रमशः 7 %, 1% और 4% है। पूरे देश में उत्पन्न गेहूँ और चावल का 65% MSP पर ख़रीद इन्ही दो प्रदेशों से होता है।
ऊपर उदाहरणो से आप देख सकते है, कि MSP में बदलाव या ना होना सीधे सीधे पंजाब और हरियाणा के किसानो पर प्रभाव डालेगा।बाक़ी प्रदेशों में इस MSP का प्रभाव बहुत ही कम है। अतः किसान आंदोलन 2020-21केवल पंजाब और हरियाणा में ही क्यू केंद्रित है किसान आंदोलन का एक कारण यह भी है।
APMC( Agriculture produce Market Committee)- कृषि मंडी: किसान आंदोलन 2020-21
पंजाब और हरियाणा में गेहूँ और चावल का MSP पर बिकने का सीधा सीधा सम्बन्ध मण्डियो से है। इसका कारण है किसानो की सीधी और सरल पहुँच इन मण्डियो तक। हरित क्रांति के बाद इन दो राज्यों में बहुत ही उच्चतम स्तर पर मण्डियो का विकाश और स्थापना हुआ। बाक़ी राज्य मण्डियो के मामले में पंजाब और हरियाणा से बहुत पीछे रह गये है। इन दो राज्यों में मण्डियो का जाल जैसा बिछा हुआ है। बेहतरीन रोड, और procurement सेंटर्स की मदद से ये मंडिया गाँव गाँव तक जुड़ी हुई है। तथा किसानो को अपनी फसल को इन मंडियों तक ले जाने में आसान बनाती है। अतः लगभग हर गाँव का किसान इन मंडियो में अपना फसल बेचता है।
जिन लोगों की फसल मंडी तक पहुँचती है, उसे सरकार ज़रूरत के हिसाब से MSP पर ख़रीदती है। और जो बचता है उसे मंडी से ही लगे FCI के procurement सेंटर में भेज दिया जाता है। वहाँ भी MSP पर ही लिया जाता है। अगर आप अन्य प्रदेश के गाव से जुड़े होंगे तो आपने महसूस किया होगा कि और राज्यों के किसानो को अपने ज़िले की मंडी के बारे में कई बार पता नहीं होता है। अगर मंडी है भी तो वहा तक फ़सल ले जाना मुश्किल होता है। फसल मंडी में पहुँच भी जाए तो सरकार ख़रीदेगी या नहीं उसकी भी कोई गारंटी नहीं रहती है। अतः इन राज्यों के किसान अपने गाँव में ही अपनी फसल औने पौने दाम पर छोटे मोटे व्यापारियों को बेच देते है।
पंजाब और हरियाणा के किसानो का आरोप है।निजी क्षेत्र का ख़रीद सेंटर बनने से इन मण्डियो का महत्व कम होगा। क्यूँकि मंडी में ख़रीद फ़रोख़्त पर 8% का टैक्स लगता है।जबकि निजी ख़रीद केंद्र पर कोई टैक्स नहीं।स्पर्धा के चलते धीरे धीरे ये सरकारी मंडिया बंद हो जाएगी। इन मंडियो के खतम होने के बाद निजी क्षेत्र के खिलाड़ी बाज़ार के हिसाब से कम से कम दाम पर ख़रीद करेंगे। जिससे किसानो का मुनाफ़ा घटेगा।
इन मण्डियो के माध्यम से आसानी से पंजाब और हरियाणा के किसानो की फसल MSP पर बिक जाती है।बाक़ी FCI में। अतः किसान आंदोलन 2020-21 केवल पंजाब और हरियाणा में ही केंद्रित है किसान आंदोलन का दूसरा कारण यह है।
अढ़तिया (Middle Man):
इन सबके बीच आढ़तियों की चर्चा भी आपने सुनी होगी । जो मिडल मैन या कमिशन एजेंट के तौर पर इन मण्डियो में काम करते है। ये आढ़तिए इन्ही किसान परिवारो से आते है। हालाँकि इनका परिवार प्रभुत्व वाला होता है। और इनकी राजनीति में पहुँच भी होती है। कई मामलों में इनकी भूमिका मंडी के अंदर संदिग्ध हो सकती है। परंतु पंजाब और हरियाणा में ये सामाजिक रूप से किसानो से जुड़े हुए है। अनौपचारिक उधार और लोन इनके द्वारा किसानो को दिया जाता है। जिससे वो अपनी बीज और खाद इत्यादि ख़रीद सके। ये बात भी सच है कि जिनकी पहुँच बैंक तक नहीं है, उनको आसानी से लोन मिलता है इन आढ़तियों द्वारा।
मंडी समाप्त होने से आढ़तिए भी समाप्त होंगे। जिससे किसानो का लोन का अनौपचारिक स्रोत बंद हो जाएगा।
Freedom in Storage of Grains- खाद्य संग्रहण में छूट
कृषि कानूनो में से तीसरा क़ानून खाद्य संग्रहण की छूट देता है। यहा पर आपत्ति ये है कि इसका फ़ायदा बड़े बड़े corporates और कुछ बड़े किसान ही उठा सकते है। छोटे किसान जिनकी संख्या ज़्यादा है, वो कई दिन तक अनाज संग्रह करके रखने में असमर्थ है। किसानो में भावना यह है कि इससे जमाख़ोरी बढ़ेगी और कमी होने पर वही चीजें उन्हें और आम जनता को कई गुने दाम में ख़रीदनी पड़ेगी।
निष्कर्ष :किसान आंदोलन 2020-21
जहाँ तक पंजाब और हरियाणा की बात है।वहाँ के किसान पुराने क़ानून के हिसाब से बहुत अच्छा कर रहे है। पंजाब और हरियाणा भारत देश के अन्न भण्डार के रूप में काम करते है। हरित क्रांति के बाद इन प्रदेशों ने गेहूं और चावल की मदद से भारत को खाने के मामले में आत्म निर्भर बनाया। भारत के खाद्य सुरक्षा को बरकरार रखने में इनका सबसे बड़ा योगदान है।
पुराने क़ानून में सबसे ज़्यादा फ़ायदा इन दो प्रदेश के किसानो को मिला जिसके लिए बहुत सारे कारण ज़िम्मेदार है। सरकारी सहयोग, मंडी, हरित क्रांति इत्यादि।
आँकड़ों के हिसाब से भारत के FCI में मानक से ज़्यादा गेहूं और चावल है। और इसके ऊपर भी इन्हें ख़रीद करनी पड़ती है। जो या तो पड़े पड़े ख़राब हो जाते है, या कम दाम पर निर्यात होते है। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक़ अब समय आ गया है, कि गेहूं और चावल से हट कर कैश क्रॉप्स के ऊपर ध्यान दिया जाए।
चूँकि अभी तक इन दो प्रदेशों के किसान अच्छे से फ़ायदा उठा रहे थे। अब डर ये है कि नए क़ानून से ये फ़ायदे इनके हाथों से छीन जाएँगे। ये डर बाक़ी के प्रदेशों में नहीं है।क्यूँकि वो तो पूरानी व्यवस्था में भी फ़ायदा नहीं ले पा रहे थे। यही कारण है कि किसान आंदोलन 2020-21 केवल पंजाब और हरियाणा में ही केंद्रित है।
नए क़ानून से उन राज्य के किसानो को फ़ायदा मिलेगा जहाँ पर सरकारी मंडियों की पहुँच नहीं है। जहाँ बाज़ार को सामान थोड़ा सस्ता मिलेगा वहाँ के किसानो के अनाज की बिक्री ज़्यादा होगी।
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